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जम्मू-कश्मीर: 47 पाकिस्तानी आतंकी खत्म, अब बचे 71 विदेशी दहशतगर्द; आतंकियों के जाल में यूं फंस रहे युवा

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नई दिल्ली, एजेंसी। जम्मू-कश्मीर में इस साल सुरक्षा बलों की मुठभेड़ में कुल 60 आतंकी मारे गए हैं। खास बात ये है कि मारे गए दहशतदर्गों में 13 लोकल और 47 विदेशी आतंकी थे। पीर पंजाल की गुफाओं सहित जम्मू-कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में छिपे सक्रिय कुल आतंकियों की संख्या पर गौर करें, तो इसमें से 36 स्थानीय और 71 विदेशी यानी पाकिस्तान मूल के आतंकी बताए जाते हैं। भारतीय सुरक्षा बलों का दावा है कि पिछले कुछ समय में कोई भी ऐसी बड़ी घुसपैठ नहीं हुई है, जिसमें पाकिस्तान के आतंकियों ने सीमा पार की हो। ऐसे कई प्रयास हुए हैं, मगर उन्हें सुरक्षा बलों ने अपनी कार्रवाई के जरिए असफल कर दिया था। यहां पर एक सवाल उठ रहा है कि जब सीमा पर बड़ी घुसपैठ नहीं हुई है, तो इतने विदेशी आतंकी कहां से आ गए। सुरक्षा एजेंसियां इस बात पर भी गंभीरता के साथ विचार कर रही हैं कि नेपाल का मार्ग, आतंकियों के भारत में प्रवेश करने का ‘एंट्री प्वाइंट’ तो नहीं बन रहा।
जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों के साझा ऑपरेशन में इस वर्ष 60 आतंकी मारे गए हैं। 12 अक्तूबर से 26 अक्तूबर के बीच तीन आतंकी/मददगार पकड़े गए थे। गत वर्ष 137 आतंकी सक्रिय थे। इनमें 55 स्थानीय और 82 विदेशी दहशतगर्द शामिल थे। जम्मू कश्मीर में मौजूदा समय में कुल 107 आतंकी सक्रिय बताए जाते हैं। इनमें से 36 स्थानीय आतंकी हैं, जबकि विदेशी आतंकियों की संख्या 71 है। 2022 में 187 आतंकी मारे गए थे। इनमें से स्थानीय आतंकी 130 थे, जबकि विदेशी आतंकियों की संख्या 57 थी।
2023 में 60 आतंकी मारे गए हैं, जिनमें से 13 स्थानीय और 47 विदेशी आतंकी हैं। जम्मू-कश्मीर में 2021 में 180, 2020 में 221, 2019 में 157 और 2018 में 257 आतंकी मारे गए थे। सेना एवं दूसरे सुरक्षा बलों का दावा है कि हाल-फिलहाल कोई बड़ी घुसपैठ नहीं हुई है। सीमा पर पुख्ता चौकसी है। ऐसे में वे आतंकी कहां से और कैसे घुसे हैं, यह पता लगाया जा रहा है। पाकिस्तान के आतंकियों ने कहीं नेपाल के रास्ते तो भारत में प्रवेश नहीं किया है, इस बात का पता लगाया जा रहा है।
जम्मू कश्मीर में विदेशी मूल के आतंकियों की संख्या ज्यादा है। पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई, अपने गुर्गे आतंकी संगठनों की मदद से जम्मू कश्मीर में ‘हाइब्रिड’ आतंकियों की भर्ती कर रही है। घाटी में हाल-फिलहाल में कोई बड़ी घुसपैठ नहीं हुई है। संभव है कि सभी विदेशी आतंकी कई वर्षों से घाटी में कहीं पर छिपे हों। सुरक्षा बलों की वहां तक पहुंच न हो सकी हो। जम्मू कश्मीर पुलिस, आईबी, आर्मी एवं अन्य एजेंसियां आतंकियों के ठिकाने तक पहुंचने का प्रयास कर रही हैं। इन आतंकियों को घाटी में किसी न किसी तरह की मदद तो मिल ही रही है, इससे कोई इनकार नहीं कर सकता। सीमा पार के आतंकी संगठन, पाकिस्तानी आतंकियों को बचाना चाहते हैं। वे ज्यादा से ज्यादा ‘हाइब्रिड’ आतंकी तैयार कर रहे हैं। हाइब्रिड आतंकियों की मदद से ही टारगेट किलिंग की वारदात को अंजाम दिया जाता है। ये आतंकी, पब्लिक के बीच ही अंडर ग्राउंड वर्कर बनकर काम करते हैं। इन पर पुलिस या आम जनता को शक नहीं होता, क्योंकि ये उनके बीच में ही रहते हैं।
जम्मू-कश्मीर में हाइब्रिड आतंकियों ने पिछले तीन दिन में तीन वारदातों को अंजाम दिया है। पुलवामा में 29 अक्तूबर को आतंकियों ने उत्तर प्रदेश के एक श्रमिक को गोली मार दी। इसके बाद 30 अक्तूबर को श्रीनगर में क्रिकेट खेल रहे जेकेपी के इंस्पेक्टर मसरूर अहमद वानी को गोली मारी गई थी। 31 अक्तूबर को बारामूला में जम्मू-कश्मीर पुलिस के हवलदार गुलाम मोहम्मद डार को गोली मारी गई थी। जेएंडके में जब कोई युवा गायब हो जाता है, तो गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज की जाती है। जम्मू कश्मीर पुलिस, लापता हुए युवक का पता लगाने का प्रयास करती है। दो तीन सप्ताह बाद असल खेल शुरू होता है। एक तरफ गुमशुदा युवक के परिजन और पुलिस उसे खोज रही होती है और दूसरी ओर तभी उस युवक की तस्वीर सोशल मीडिया पर आ जाती है। तस्वीर में वह युवक किसी आतंकी संगठन के सदस्य के तौर पर हथियार लहराता हुआ नजर आता है। इसके बाद सुरक्षा एजेंसियों द्वारा उसे सक्रिय आतंकी मान लिया जाता है। कई युवाओं को इसी तरीके से सक्रिय आतंकी बना दिया जाता है।
सूत्रों के अनुसार, आतंकी संगठनों को यह बात अच्छे से मालूम होती है कि पुलिस और परिजन, लापता युवक की खोजबीन में लगे हैं। घाटी में कई ऐसे उदाहरण मौजूद हैं, जिनमें कई युवा कुछ समय बाद ही हथियार छोड़कर दोबारा से मुख्यधारा में शामिल हो गए। आतंकी संगठन, गुमराह युवक का ब्रेनवॉश कर देते हैं। इसके बाद जब उन्हें लगता है कि वह युवक अभी भी पूरी तरह से आतंक की राह पर चलने को तैयार नहीं है और वह मुख्यधारा में लौटना चाहता है, तो वे उस युवक का आतंकी संगठन के साथ फोटो वायरल कर देते हैं। इसके बाद वह युवक अधर में फंस जाता है। हथियार के साथ जैसे ही उसका फोटो सार्वजनिक होता है, तो पुलिस उसका नाम, सक्रिय आतंकियों की सूची में डाल देती है। ऐसे में वह युवक, चाह कर भी मुख्यधारा में वापसी नहीं कर पाता। पिछले चार साल में महज दर्जनभर आतंकियों का सरेंडर, आतंकी संगठनों की इस कहानी पर मुहर लगाता है।

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