मंत्रियों और सांसदों के वेतन, भत्ते में कटौती संबंधी विधेयकों को राज्यसभा की मंजूरी
नई दिल्ली । राज्यसभा ने मंत्रियों के वेतन एवं भत्तों से संबंधित संशोधन विधेयक और सांसदों के वेतन, भत्ते में एक वर्ष के लिए 30 प्रतिशत की कटौती के प्रावधान वाले विधेयकों को शुक्रवार को मंजूरी दे दी। इस धनराशि का उपयोग कोरोना महामारी के कारण उत्पन्न स्थिति से मुकाबले के लिए किया जाएगा।
संसद सदस्य वेतन, भत्ता एवं पेशन संशोधन विधेयक 2020 को इस सप्ताह के शुरू में लोकसभा की मंजूरी मिल चुकी है। उच्च सदन में संक्षिप्त चर्चा के बाद मंत्रियों के वेतन एवं भत्तों से संबंधित संशोधन विधेयक 2020 और संसद सदस्य वेतन, भत्ता एवं पेशन संशोधन विधेयक 2020 को ध्वनिमत से मंजूरी दे दी गई। संसद सदस्य वेतन, भत्ता एवं पेशन संशोधन विधेयक 2020 को इससे संबंधित अध्यादेश के स्थान पर लाया गया है।
संसद सदस्य वेतन, भत्ता एवं पेशन (संशोधन) अध्यादेश 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने छह अप्रैल को मंजूरी दी थी और इसके अगले दिन यानी सात अप्रैल को यह जारी किया गया था। संसद सदस्य वेतन, भत्ता एवं पेशन संशोधन विधेयक 2020 के माध्यम से सांसदों के वेतन में 30 फीसदी की कटौती के लिए संसद सदस्यों के वेतन, भत्ते और पेंशन अधिनियम, 1954 और मंत्रियों के सत्कार भत्ते में कटौती के लिए मंत्रियों का वेतन और भत्ते अधिनियम, 1952 में संशोधन किया गया है।
मंत्रियों के वेतन एवं भत्तों से संबंधित संशोधन विधेयक 2020 को भी ध्वनिमत से मंजूरी दे दी गई। यह विधेयक गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने पेश किया। राज्यसभा में इन विधेयकों पर एक साथ हुई चर्चा में भाग लेते हुए अधिकतर विपक्षी सदस्यों ने कहा कि सांसदों के वेतन में कटौती से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन सरकार को सांसद निधि के निलंबन पर पुनर्विचार करना चाहिए। संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि कोविड-19 के कारण उत्पन्न अभूतपूर्व स्थिति को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
यह कदम उनमें से एक है। उन्होंने कहा कि परोपकार की शुरुआत घर से होती है, ऐसे में संसद के सदस्य यह योगदान दे रहे हैं और यह छोटी या बड़ी राशि का सवाल नहीं है बल्कि भावना का है। कुछ सदस्यों द्वारा नोटबंदी, जीएसटी जैसे मुद्दे उठाने का जिक्र करते हुए जोशी ने कहा कि 2019 के चुनाव में इसके बारे में कई दलों एवं लोगों ने मिथ्यारोप किया था और कुछ लोग उच्चतम न्यायालय भी गए थे। लेकिन देश की जनता ने हमें जबर्दस्त जनादेश दिया।