संपादकीय

ऑनलाइन शिक्षा का विकल्प नहीं

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कोरोना के कारण बाधित हुई शिक्षा का विकल्प ऑनलाइन शिक्षा के तौर पर चुना गया था लेकिन अब यह सिद्ध हो रहा है कि ऑनलाइन शिक्षा केवल एक औपचारिकता ही है और इससे छात्रों एवं शिक्षकों के बीच संवेदन एवं शिक्षा के आदान-प्रदान का प्रवाह नहीं बन पा रहा है। कोरोना संक्रमण के कारण पूरे देश में स्कूलों को खोलने को लेकर अभी तक कोई निश्चित फैसला नहीं लिया जा चुका है लेकिन मार्च से बंद शिक्षा को यूं ही नहीं छोड़ा जा सकता था। इसके विकल्प के तौर पर ऑनलाइन शिक्षा को चुना गया क्योंकि कई संस्थान पहले से ही ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से विभिन्न पाठ्यक्रम उपलब्ध करा रहे थे। हालांकि स्कूली शिक्षा के लिए ऑनलाइन व्यवस्था को पटरी पर आने में अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। एक सामाजिक संस्था ने पांच राज्यों में ऑनलाइन शिक्षा पर शोध किया तो परिणाम सामने आया कि ऑनलाइन शिक्षा के कोई मायने नहीं है और यह पूरी तरह से निष्प्रभावी साबित हुई है। लगभग 90% शिक्षकों और 70% अभिभावकों ने भी यह माना कि ऑनलाइन शिक्षा कभी भी नियमित शिक्षा का विकल्प साबित नहीं बन सकती और बच्चों के लिए यह कहीं से भी प्रभावशाली नहीं है। नियमित विद्यालय जाने के दौरान बच्चों का शिक्षकों एवं स्कूलों में कराई जाने वाली अन्य गतिविधियों से सीधा संपर्क रहता है जो कि ऑनलाइन कक्षा के माध्यम से पूरी तरह कट चुका है। कोरोना भले ही अभी भी प्रभावी है लेकिन बावजूद इसके अभिभावकों को अब लगने लगा है कि स्कूल खुलने चाहिए क्योंकि ऑनलाइन शिक्षा कहीं से भी प्रभावी साबित नहीं हुई है। एक तरफ कोरोना का लगातार बढ़ता आंकड़ा और दूसरी तरफ वर्ष 2020 -21 का समाप्त होता शैक्षिक सत्र। यह अब लगभग तय हो चुका है कि इस शिक्षा सत्र ऑनलाइन शिक्षा के माध्यम से ही पूरा करना होगा और बोर्ड परीक्षाओं को छोड़ दें तो अन्य कक्षाओं के बच्चों को अगली क्लास में प्रोन्नत करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प विद्यालयों के पास नहीं रह गया है। ऑनलाइन शिक्षा का एक सबसे बड़ा दुष्प्रभाव बच्चों का मोबाइल से जुड़ा भी है जबकि 60% बच्चे ऐसे हैं जो स्मार्टफोन उपलब्ध ना होने के कारण ऑनलाइन शिक्षा से वंचित हैं। विद्यालय का अपना पठन-पाठन का माहौल होता है जहां पाठ्यक्रम के साथ-साथ अनुशासन भी एक अहम हिस्सा रहता है। कोरोना संक्रमण से बच्चों को बचाना भी है और शिक्षा का उद्देश्य भी पूरा करना है लेकिन सवाल फिर वही का वही खड़ा हो गया के क्या विद्यालयों को खोला जाए? यदि नहीं तो आखिर हमारे पास ऐसा कौन सा दूसरा विकल्प है जिससे शिक्षक एवं छात्रों के बीच सीधा संवाद बनाया जा सके? निश्चित तौर पर फिलहाल हमारे पास ऑनलाइन शिक्षा के अतिरिक्त और कोई दूसरा ऐसा साधन नहीं है जिसके माध्यम से शिक्षकों एवं छात्रों के बीच समन्वय स्थापित हो सके। ऑनलाइन शिक्षा भले ही निष्प्रभावी बताई जा सकती है लेकिन जब तक हमारे पास स्कूल जैसी व्यवस्था का कोई विकल्प उपलब्ध नहीं होगा तब तक इस निष्प्रभावी शिक्षा को ही आधार बनाकर पाठ्यक्रम पूर्ण करने की मजबूरी सभी शैक्षिक संस्थानों के आगे बनी रहेगी। ऑनलाइन शिक्षा के कारण छात्रों की बौद्धिकता का भी पूर्ण तौर पर आकलन नहीं हो पा रहा है। यहां कम से कम कैसी संभावनाएं तलाशने का कार्य जरूर होना चाहिए जो ऑनलाइन शिक्षा को प्रभावी एवं रिजल्ट ओरिएंटेड भी बनाा सके

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