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पौड़ी गढ़वाल में पलायन आयोग ने पकड़ा उद्यान विभाग का फर्जीबाडा, 16259 हैक्टेयर में नहीं मिले बगीचे

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उद्यान विभाग ने कहा 20301 हैक्टियर में हैं उद्यान तो पलायन आयोग ने पाया 4042 हैक्टेयर
– हजारों करोड़ रुपए योजनाओं में खर्च करने के बाद भी राज्य में फ़ल उत्पादन का घट रहा क्षेत्रफल
– पलायन आयोग की रीपोर्ट के अनुसार पौड़ी, टिहरी व अल्मोड़ा जनपदों में विभाग द्वारा दर्शाये गये आंकड़ों से हजारों हैक्टर कम पाया गया फल उत्पादन का क्षेत्रफल
– बक्सी पटनायक कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार उद्यान विभाग द्वारा दर्शाये गये फल उत्पादन क्षेत्र फल के आंकड़े मात्र 13 % ही सही है
– फल उत्पादन के  काल्पनिक आंकड़ों के सहारे राज्य नाशपाती,आड़ू,प्लम एवं खुवानी उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर
–   राज्य में फर्जी/ काल्पनिक आंकड़ों के सहारे नियोजन की बात की जा रही है
– फर्जी फल उत्पादन के आंकड़ों के सहारे पहाड़ी क्षेत्रों में स्थापित अधिकतर खाद्य प्रसंस्करण यूनिटें हुई बन्द
जयन्त प्रतिनिधि
कोटद्वार। उत्तराखण्ड उद्यान विभाग द्वारा हजारों करोड़ रुपए योजनाओं (हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन, जिला योजना, राज्य सेक्टर की योजना, कृषि विकास योजना, परम्परागत कृषि विकास योजना , जनजातीय विकास योजन निधि, नाबार्ड आदि) पर खर्च करने के बाद ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग उत्तराखंड की  जनपद पौड़ी, टिहरी व अल्मोड़ा की रिपोर्ट के अनुसार विभाग द्वारा फल उत्पादन के अन्तर्गत दर्शाये गये आंकड़ों से बहुत कम पाया गया है।
उत्तराखण्ड के उद्यान विशेषज्ञ डा० राजेंद्र कुकसाल द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि पलायन आयोग की पौड़ी जनपद की रिपोर्ट के अनुसार जनपद में उद्यान विभाग द्वारा फल उद्यान के अन्तर्गत बर्ष 2015-16 में 20301 हैक्टियर क्षेत्रफल दर्शाया गया है। पलायन आयोग के बर्ष 2018-19 सर्वे में पाया कि पौड़ी जनपद में मात्र  4042 हैक्टेयर क्षेत्रफल में उद्यान हैं , याने दर्शाये गये क्षेत्रफल से 16259 हैक्टेयर कम।
पलायन आयोग की टिहरी जनपद की रिपोर्ट के पृष्ट संख्या 86 के अनुसार  जनपद में बर्ष 2015 – 16 में सेब का क्षेत्रफल जो   3820 था बर्ष 2017 – 18 में घट कर 853 हैक्टर, नाशपाती का 1815 से घटकर 240 हैक्टर , पुल्म का 2627 से घटकर 240, खुबानी का 1498 से घटकर 162 तथा अखरोट का 4833 से घटकर 422 हैक्टर रह गया है। अल्मोड़ा जनपद की रिपोर्ट के पृष्ट संख्या 87 में उद्यानीकरण में निरंतर कमी होना लिखा गया है। यही हाल सभी जनपदों के हैं।
डा० राजेंद्र कुकसाल ने कहा है कि दूसरी ओर प्रत्येक जनपद की प्रगति आख्या में प्रति बर्ष लाखों पौधों के रोपण पर लाखों रुपए व्यय होना दर्शाया गया है। वर्ष 1986 में  उत्तर प्रदेश के आठ पहाड़ी जनपदों में उद्यान विकास हेतु तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री नारायण दत्त तिवारी जी ने *बक्सी एवं पटनायक कमेटी* का गठन विश्व बैंक हेतु प्रोजैक्ट बनाने के उद्देश्य से किया। पटनायक बक्सी कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट के पृष्ट संख्या दस मेंं लिखा है कि उद्यान विभाग द्वारा फलों के अन्तर्गत दर्शाये गये क्षेत्र फल व उत्पादन के आंकड़े मात्र 13% ही सही है खराब फल पौध व अनुचित तरीके से पैकिंग व कृषकों के खेत तक फल पौध ढुलान गलत तरीके से करने के कारण 40% पौधे पौध लगाने के प्रथम बर्ष में ही मर जाते हैं विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर बर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलौं का उत्पादन बढ़ता रहता है इसलिए दर्शाते गये आंकड़े सही नहीं है।
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फर्जी आंकड़ों के सहारे राज्य नाशपाती, आड़ू,प्लम एवं खुवानी में देश में प्रथम स्थान पर
उत्तराखण्ड के उद्यान विशेषज्ञ डा० राजेंद्र कुकसाल का दावा है कि उद्यान विभाग द्वारा बर्ष 2015-16 के फल उत्पादन के आंकड़ों एवं प्रगति रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य नाशपाती, आड़ू , पल्म तथा खुवानी फल उत्पादन में पूरे देश में प्रथम स्थान पर तथा अखरोट उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर है। आंकड़ों के अनुसार नाशपाती 13029 हैक्टियर उत्पादन 78778 मैट्रिक टन, आड़ू 7855 हैक्टेयर उत्पादन 57933 , प्लम 8837 हैक्टेयर उत्पादन 36154 , खुवानी 7954 हैक्टियर उत्पादन 28197 टळ, अखरोट 17243 हैक्टेयर उत्पादन 19322 टळ तथा सेव के अन्तर्गत 24982 हैक्टियर व उत्पादन 51940 टळ दर्शाया गया है। फलों के अन्तर्गत बर्ष 2015 – 16 में फलों के अन्तर्गत कुल क्षेत्रफल 175329.90 हैक्टर तथा उत्पादन 659094.15 दर्शाया गया है।
विभाग के बर्ष 2018 -19 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में फ़ल उत्पादन के अन्तर्गत 180468.79 हैक्टर क्षेत्र फल तथा उत्पादन 664555.41 मैट्रिक टन दर्शाया गया है। जबकि वास्तविकता यह है कि जव हम चार धाम यात्रा पर याने गंगोत्री यमुनोत्री श्रीबद्रीनाथ व केदारनाथ भ्रमण पर जाते है जिसमें राज्य के पांच पर्वतीय जनपदों का भ्रमण हो जाता है आपको 1200 मीटर की ऊंचाई तक कहीं कहीं घाटियों में आम बीजू के पौधे उससे ऊपर के क्षेत्रों में खेतों के किनारे व गधेरों में अखरोट के पौधे देखने को मिलते है ऊंचाई वाले क्षेत्रों में माल्टा पहाड़ी नीम्बू व चूलू खुवानी बीजू के पौधे देखने को मिलेगें रास्तों पर कहीं पर भी स्थानीय उत्पादित फल यात्रा सीज़न याने मई से अक्टूबर माह तक बिकते नहीं दिखते कुमाऊं मण्डल में भवाली गर्मपानी रानीखेत व कुछ अन्य स्थानों में स्थानीय उत्पादित फल बिकते हुए दिखाई देते हैं। द्वाराहाट व चौखुटिया क्षेत्र में गोला नाशपाती का उत्पादन होता है जिसका बाजार भाव कास्तकारों को अच्छा नहीं मिलता है।
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फर्जी फल उत्पादन के आंकड़ों के सहारे लगी ज्यादातर बड़ी खाद्य प्रसंस्करण यूनिटें बन्द हुई है
उत्तराखण्ड के उद्यान विशेषज्ञ डा० राजेंद्र कुकसाल ने यह भी कहा है कि:-
रामगढ नैनीताल में 70 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई थी फ़ल उपलब्ध न होने के कारण बन्द करदी गयी।
इसी प्रकार अल्मोड़ा जनपद के मटेला में 80 के दशक में करोंड़ों रुपए खर्च कर कोल्ड स्टोरेज बना जो आज फल उपलब्ध न होने के कारण बन्द पडा है ।
रानीखेत चौबटिया गार्डन की एपिल जूस प्रोसिसिग यूनिट बन्द पड़ी है।
चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में भी 80 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट खुली और बन्द हुई।
रुद्रप्रयाग जनपद के तिलवाड़ा में भी फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई वह भी अधिक तर बन्द ही रहती है।
कई स्वयंम सेवी संस्थाओं एवं परियोजनाओं के माध्यम से फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई किन्तु फल उपलब्ध न होने के कारण नहीं चल पाई।
पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं कहीं पर व्यक्तिगत स्माल स्केल प्रससिंग यूनिट लगी है किन्तु अधिकांश यूनिटें पहाड़ी क्षेत्रों में फल न उपलब्ध होने के कारण मैदानी क्षेत्रो हरिद्वार आदि स्थानों से किन्नो संतरा का पल्प/जूस इक्ट्ठा कर माल्टा जूस के नाम पर बेच रहे हैं।
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फर्जी आंकड़ों से हो रही है धन की बर्वादीे
उत्तराखण्ड के उद्यान विशेषज्ञ डा० राजेंद्र कुकसाल का मानना है कि किसी भी राज्य के सही नियोजन के लिए आवश्यक है कि उसके पास वास्तविक आंकड़े हों तभी भविष्य की रणनीति तय की जासकती है। काल्पनिक (फर्जी) आंकड़ों के आधार पर यदि योजनाएं बनाई जाती है तो उससे आवंटित धन का दुरपयोग ही होगा।
राज्य बनने पर आश जगी थी कि विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार बनेंगी किन्तु  ऐसा नहीं हो पाया योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उतर प्रदेश के समय में चल रही थी। राज्य के भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार योजनाओं में सुधार नहीं हुआ। विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित /संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके । यदि विभाग /शासन को सीधे कोई सुझाव/ शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। प्रधानमंत्री / मुख्यमंत्री  के समाधान पोर्टल पर सुझाव/ शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा  कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है। उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर  योजनाओं में सुधार ला सके। कहने को राज्य में अपना नर्सरी एक्ट लागू हो गया है किन्तु अभी भी खराब, कटी जड़ों की फल पौध अनुचित तरीके से पैकिंग की हुई व नर्सरी से कृषकों के खेत तक गलत तरीके से फल पौध ढुलान करने के कारण 40% से अधिक पौधे, पौध लगाने के प्रथम बर्ष में ही मर जाते हैं। विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर बर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलों का उत्पादन बढ़ाता रहता है इसलिए दर्शाते गये आंकड़े सही नहीं होते है। जब तक किसान जागरूक नहीं होंगे, योजनाओं में राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुसार सुधार नहीं किया जाता तथा  क्रियान्वयन में पारदर्शिता नहीं रखी जाती सरकारी योजनाओ में लगे बाग कागजों में अधिक व धरातल में कम ही दिखाई देंगे।

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