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प्राइवेट अस्पताल और लैब से करवाएं आरटीपीसीआर जांच : हाईकोर्ट

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नैनीताल। उत्तराखंड में कोरोना मरीजों की मौत पर चिंता जताते हुए हाईकोर्ट ने शासन-प्रशासन को कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। अदालत ने निजी अस्पतालों और लैबों का तत्काल नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत पंजीकरण कर इन्हें आरटीपीसीआर जांच में लगाने को कहा है। हल्द्वानी, देहरादून और हरिद्वार जैसे शहरों में जहां कोरोना तेजी से फैल रहा है, वहां रोज 30 से 50 हजार जांचें कराने के निर्देश कोर्ट ने दिए हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से अर्जेंट सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान और आलोक वर्मा की खंडपीठ ने इसके अलावा भी कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए हैं। प्रदेश में तेजी से बढ़ते कोरोना और बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्थाओं के खिलाफ अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली और देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते अदालत ने उत्तराखंड में कोरोना से मृत्युदर (1.42) देश (1.14) से अधिक होने पर गहरी चिंता जताई। बेंच ने स्वास्थ्य सचिव अमित नेगी को कई अहम निर्देश दिए। अदालत ने कहा कि होम आइसोलेट मरीजों को सुविधाएं मिलने में देरी नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा डीएम को अस्पतालों में रोजाना बेड और ऑक्सीजन का रिकॉर्ड मेनटेन करने के भी आदेश दिए हैं ताकि संकट के समय के लिए पहले से योजना बनाई जा सके। सभी बिंदुओं पर 7 मई तक कार्रवाई कर रिपोर्ट पेश करने को अदालत ने कहा है। 10 मई को होने वाली अगली सुनवाई पर भी सचिव को मौजूद रहने के आदेश दिए गए हैं।
एसटीएच में ही उपनलकर्मियों के रहने-खाने की व्यवस्था हो: हाईकोर्ट ने कुमाऊं के इकलौते कोविड अस्पताल एसटीएच में कार्यरत करीब सात सौ उपनल कर्मियों के लिए वहीं रहने और खाने की व्यवस्था करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि रोजाना संक्रमित मरीजों के बीच काम करने के बाद उनके घर जाने से उनका परिवार भी प्रभावित हो रहा है। ऐसे में उनके लिए वहीं रहने-खाने की व्यवस्था की जाए।
कोर्ट ने इन बिंदुओं पर सात मई तक मांगी रिपोर्ट
होम आइसोलेशन मरीजों को त्वरित सुविधाएं उपलब्ध कराएं।
गरीबों को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना हेल्थ कार्ड शीघ्र उपलब्ध कराएं।
सभी जिला अधिकारी आशा वर्कर, एनजीओ के माध्यम से संक्रमित को चिन्हित करें।
अस्पतालों में कितने बेड, कितनी ऑक्सीजन है, इसका रोज का रिकॉर्ड रखा जाए।
हल्द्वानी, हरिद्वार और देहरादून में रोज 30-50 हजार आरटीपीसीआर-रैपिड एंटीजन टेस्ट करें।
उत्तराखंड में 2500 रजिस्टर्ड दंत चिकित्सक हैं। कोविड सेंटरों में डॉक्टरों की कमी है। ऐसे में सरकार इनकी भी मदद लें।
एसटीएच में रामनगर से आने वाले कोरोना पीड़ितों का भार बढ़ रहा है, इसलिए रामनगर में भी एक कोविड सेंटर बनाया जाए।
निजी अस्पताल ऐसे पीड़ितों का रजिस्ट्रेशन नहीं कर रहे है, जिनका ऑक्सीजन 92 से कम है। हर जिले में नोडल अधिकारी नियुक्त करें, जो ऐसे पीड़ितों की शिकायतों का निस्तारण करे।
मरीजों से अधिक चार्ज करने वाले एम्बुलेंस मालिकों पर कार्यवाही करते हुए उनका पंजीकरण कैंसिल करें।
पहाड़ों पर इंटरनेट न चलने से वैक्सीनेशन के लिए रजिस्ट्रेशन में दिक्कत है, ऐसे लोगों का वैक्सीनेशन बिना पंजीकरण कराएं।
रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी रोकने के लिए ड्रग्स इंस्पेक्टर इस पर क्यूआर कोड लगाएं।
हाईकोर्ट ने कहा कि कोरोना संक्रमितों के संस्कार के लिए श्मशान घाटों की व्यवस्था भी दुरुस्त की जाए।
अर्जेंसी सुनवाई को याचिकाकर्ता ने लगाया ये आधार : अधिवक्ता दुष्यंत मैनाली और देहरादून निवासी सच्चिदानंद डबराल ने शपथपत्र के माध्यम से कहा था कि वर्तमान में प्रदेश के अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं है। रेमडेसिविर इंजेक्शन भी उपलब्ध नहीं है। इससे मरीज-तीमारदार परेशान हैं। कई जगह पीपीई किट भी नहीं है। एंबुलेंस सरकारी नियंत्रण के अभाव में मनमाना किराया वसूल रही हैं। एम्बुलेंस पीड़ितों से एक किलोमीटर का किराया 5000 हजार तक ले रहे हैं। शव जलाने के लिए शमशान घाट भी कम पड़ गए हैं। घाटों में लकड़ियों तक की भारी कमी है। अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड उपलब्ध नहीं है। होम आइसोलेशन मरीजों को भी सुविधाएं नहीं दी जा रही है। आरटीपीसीआर टेस्ट की गति भी बेहद धीमी है और 30 हजार टेस्ट रिपोर्ट पेंडिंग हैं। पहले कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए 10 मई की तिथि तय की थी, लेकिन बुधवार को याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में अर्जेंसी प्रार्थना पत्र प्रस्तुत कर सुनवाई का अनुरोध किया गया था।

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