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कुरुक्षेत्र: उदयपुर चिंतन शिविर से फिर हुआ राहुल गांधी के नेतृत्व का उदय, फर्मूला पीके और एक्शन आरजी से होगा कांग्रेस का कायापलट

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नई दिल्ली, एजेंसी। उदयपुर चिंतन शिविर में कांग्रेस नेताओं ने दो दिनों तक मैराथन माथापच्ची और बहस मुबाहिसे के बाद कुछ ऐसे फैसले किए हैं, जो अगर ईमानदारी से लागू हो गए तो कांग्रेस का कायापलट हो सकता है। पूरे देश में पदयात्रा से लेकर भारत जोड़ो के नारे के जरिए कांग्रेस अब 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा और मोदी सरकार की चुनौती का मुकाबला करेगी। जनता से सीधे जुड़ने के लिए दो अक्तूबर को गांधी जयंती के दिन कन्याकुमारी से कश्मीर तक शुरू की जाने वाली कांग्रेस की पदयात्रा (इसका एलान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने अपने समापन भाषण में किया) की अगुआई खुद राहुल गांधी कर सकते हैं। हालांकि, इसकी घोषणा अभी नहीं हुई है। शिविर का एक लाइन में निचोड़ यह है कि कांग्रेस में फिर राहुल गांधी के नेतृत्व का उदय हुआ है और पिछले कुछ समय से उनके खिलाफ उठने वाले असंतोष के स्वर न सिर्फ शांत हो गए हैं बल्कि उनके समर्थन के स्वर में बदलने लगे हैं।
इस चिंतन शिविर का एक महत्वपूर्ण पहलू यह भी है कि भले ही नेहरू-गांधी परिवार के तीनों सदस्य सोनिया, राहुल और प्रियंका की शिविर में सक्रिय भागीदारी थी, लेकिन पूरे शिविर पर राहुल गांधी का प्रभाव सर्वाधिक दिखाई दिया। बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उद्घाटन भाषण में शिविर की दिशा तय की, लेकिन समापन सत्र में उनका भाषण बेहद संक्षिप्त रहा, जबकि राहुल गांधी ने ज्यादा विस्तार से अपनी बात कही। वहीं, प्रियंका गांधी ने भाषण न देकर अपनी भूमिका विचार विमर्श तक ही सीमित रखी। यह भी पार्टी और परिवार की भावी दिशा और दशा का एक अहम संकेत है। यानी पार्टी शीर्ष स्तर पर भी परिवार की भूमिका को सीमित रखना चाहती है और कांग्रेस के उदयपुर नवसंकल्प चिंतन शिविर से पार्टी में राहुल गांधी की सर्व स्वीकार्यता पर मुहर लग गई है और उनके निर्विरोध कांग्रेस अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ हो गया है।
भले ही कांग्रेस ने अपने कायाकल्प के तमाम उपाय उदयपुर नवसंकल्प चिंतन शिविर के विचार मंथन से निकाले हैं, लेकिन इन पर पीके यानी प्रशांत किशोर के ब्लूप्रिंट का असर दिखता है। अब इन पर एक्शन आरजी यानी राहुल गांधी और उनकी टीम को करना है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि पीके अपने ब्लू प्रिंट को खुद लागू करना चाहते थे जबकि पार्टी उसे सामूहिक रूप से लागू करना चाहती थी। अब राहुल गांधी ने खुद इस चुनौती को स्वीकार किया है और पीके द्वारा सुझाए गए तमाम उपायों में से महत्वपूर्ण सुझावों को चिंतिन शिविर के विचार मंथन से निकले नतीजों की शक्ल में लागू करवाने की जिम्मेदारी खुद राहुल गांधी ने संभाली है।
शिविर के तीसरे दिन कांग्रेस कार्यसमिति ने विभिन्न विषयों पर गठित छह समूहों के विचार मंथन के जिन निष्कर्षों को मंजूर किया और जिनकी घोषणा शिविर के अंतिम यानी समापन सत्र में की गई, उनमें सबसे प्रमुख है जनता के साथ पार्टी का जो संवाद और संबंध पिछले कई वर्षों से टूट गया है, उसे कायम करने और जीवंत बनाने के लिए कांग्रेस देशव्यापी पदयात्राएं आयोजित करेगी। इसकी घोषणा करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि दो अक्तूबर गांधी जयंती के दिन से कन्याकुमारी से कश्मीर तक कांग्रेस पदयात्रा आयोजित करेगी, जिसे पार्टी के नौजवान नेता संचालित करेंगे लेकिन उसमें वरिष्ठ नेताओं की शिरकत भी होगी। इससे पहले अपने संबोधन में पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कहा कि अक्तूबर में कांग्रेस पदयात्रा करेगी और जनता के साथ सीधे संवाद करेगी। इसके अलावा कांग्रेस महासचिव अजय माकन ने कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ता पूरे देश में अपने अपने जिला मुख्यालयों से 75 किलोमीटर के दायरे में पदयात्राएं करेंगे।
इसके साथ ही कांग्रेस ने उदयपुर नवसंकल्प शिविर से नया नारा दिया है- भारत जोड़ो। इसका एलान करते हुए अजय माकन ने कहा कि नौ अगस्त 1942 को अगर कांग्रेस ने नारा दिया था- अंग्रेजों भारत छोड़ो तो आज 15 मई 2022 को हमारा नारा है- भारत जोड़ो। इस नारे को मंच से लेकर पांडाल तक पूरे जोर शोर से लगाया गया। दरअसल, कांग्रेस में बदलाव लाने के लिए जो फैसले लिए गए हैं, वो सारी बातें उस ब्लू प्रिंट का हिस्सा हैं जो कांग्रेस नेतृत्व और शीर्ष नेताओं के साथ 12 घंटे से भी ज्यादा चली बैठक में चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पीके ने पेश किया था और इसे लागू करने के लिए ही कांग्रेस अध्यक्ष ने एक आठ सदस्यीय एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का गठन करने का एलान किया था। उन्होंने पीके को कांग्रेस में शामिल होकर इस समूह का सदस्य बनकर अपने ब्लू प्रिंट को लागू करने का प्रस्ताव दिया, जिसे प्रशांत किशोर ने यह कहकर नामंजूर कर दिया था कि जब तक उन्हें उनके ब्लू प्रिंट को लागू करने की पूरी स्वतंत्रता और ताकत नहीं दी जाएगी, वह कांग्रेस और एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप का हिस्सा नहीं बनेंगे। इसके बाद पीके और कांग्रेस के रास्ते अलग-अलग हो गए।

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