संपादकीय

सामाजिक प्रभाव में न दबे अपराध

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कोरोना अब सरकार के गलियारों तक घुस चुका है। सरकार के मुखिया समेत लगभग एक दर्जन लोग अब क्वारंटीन किए गए हैं। पर्यटन मंत्री एवं उनकी पत्नी की रिपोर्ट पॉजीटिव आ चुकी है। उक्त दोनों महानुभावों के संपर्क में आए लोगों की जांच रिपोर्ट की प्रतीक्षा है, खासतौर से मुख्मयमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की। इधर पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज को निशाना बनाते हुए कांग्रेस को एक ऐसा मुद्दा मिल गया है जिसमें सरकार एवं पुलिस विभाग दोनों ही निशाने पर है। कोरोना की रोकथाम हेतु आदेशित है कि जो भी जानते-बूझते हुए भी कोई कोरोना फैलाते हुए पाया गया या फिर कोरोना संक्रमितों के संपर्क में आने के बाद भी सच्चाई छिपाते हुए सामाजिक दूरियां का उल्लंघन करता हुआ पाया गया तो उसके खिलाफ हत्या कें प्रयास सहित लोगों की जान को खतरे में डालने जैसी धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया जाएगा। तकनीकी तौर पर देखें तो सतपाल महाराज सीधे तौर पर इसके लिए जिम्मेदार माने जा सकते हैं। सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत में कोरोना के लक्षणों की पुष्टि होने के बावजूद वे लोगों से मिलते-जुलते रहे, यही नहीं वे राज्य कैबिनेट की बैठक में भी शामिल हुए जिसमें खुद मुख्यमंत्री भी उपस्थित रहे। इस दौरान वे कितने ही अधिकारियों के संपर्क में आए होंगे, फाईलों को छुआ होगा, या सचिवालय के विभिन्न भागों से गुजरे होंगे, यह अब जांच का विषय बन गया है। फिलहाल इस मामले में 22 लोगों को क्वारंटीन करने की व्यवस्था की गयी है जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल है। यहां कांग्रेस ने सीधे तौर पर पुलिस विभाग को अब आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है। पुलिस महानिदेशक ने क्वारंटीन के नियमों का पालन करने की अपील तो जरूर की लेकिन इस मामले में कुछ भी बोलने से गुरेज किया कि क्या सतपाल महाराज पर कोरोना फैलाने पर मुकदमा दर्ज करने जैसी कोई कार्रवाई की जा रही है? निश्चित तौर पर मामला सीधे सरकार में शामिल मंत्री से जुड़ा हुआ है तो पुलिस मुख्यालय की क्या हिम्मत की वह कोई बयानबाजी कर सके। सामान्य स्तर के दर्जनों लोगों पर मुकदमा दर्ज कर हेकडी जमाने वाले थानेदार एवं उत्तराखंड पुलिस की घिग्घी यहां साफ बंधती नजर आ रही है। हालांकि किसी भी विधायक या मंत्री पर कोई भी कानूनी कार्रवाई करने की अपनी एक प्रक्रिया होती है, जिसका पुलिस पालन करती है, लेकिन इसके लिए भी जनपद पुलिस अपने स्तर पर कागजी कार्रवाई तो करती ही है। यह नहीं होना चाहिए कि एक तरफ तो आम आदमी पर पुलिस ताबड़तोड़ मुकदमे दर्ज करती रहे और वहीं समान परिस्थितियों में माननीयों के खिलाफ आंखें मूंद कर मुंह ही फेर ले। यहां तो मामला प्रकाश में आने के बाद उत्तराखंड के माननीयों द्वारा क्वारंटीन होने को लेकर ही उहापोह की स्थिति बनी रही। तो क्या नियम-कानून एवं व्यवस्थाएं केवल प्रवासी या आम लोगों के लिए ही है? सरकार को ऐसी व्यवस्था का प्रदर्शन करना चाहिए जिससे जनसामान्य में अपनी कानून एवं न्याय व्यवस्था के प्रति सम्मान एवं विश्वास मजबूत बने। अपराध तो अपराध है फिर चाहे वह सामान्य द्वारा किया गया हो या फिर किसी खास द्वारा। फैसला उत्तराख्ांड सरकार एवं पुलिस अधिकारियों को करना है कि वह जनता के बीच क्या मिसाल पैदा करना चाहते हैं? भेदभाव वाली या फिर समान न्याय व्यवस्था वाली।

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