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तलाक के लिए समान आधार के लिए सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर मुस्लिम पर्सनल ल बोर्ड को एतराज, उठाया यह कदम

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नई दिल्ली, एजेंसी। देश के सभी नागरिकों के लिए तलाक के सामान आधार का प्रविधान की गुजारिश करने वाली याचिका के खिलाफ अल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ल बोर्ड ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। अल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ल बोर्ड ने भाजपा नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दाखिल की गई याचिका का विरोध किया है। जनहित के मसलों को उठाने के लिए चर्चित उपाध्याय ने अपनी याचिका में तलाक के लिए समान आधार तय करने की गुजारिश की है।
उन्होंने याचिका में दलील दी है कि संविधान के अनुच्टेद-14, 15, 21 और 44 पर पर्सनल ल खरा नहीं उतरता है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में की गई गुजारिश को लागू करने की मांग की है। उन्घ्होंने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद-13 की भावना का आधार पर्सनल लॉ को शामिल नहीं करता है। उपाध्घ्याय ने याचिका में कहा है कि संविधान सभा को पर्सनल लॉ और परंपरा एवं उपयोग के बीच का अंतर पता था।
यही कारण है कि सोच-समझ कर संविधान के अनुच्छेद-13 से पर्सनल ल को बाहर रखने और उसमें परंपरा एवं उपयोग को शामिल करने का फैसला लिया। वहीं ने अपनी अर्जी में कहा है कि मुस्लिम ही नहीं हिंदुओं में भी विवाह और तलाक से जुड़े कानून एक जैसे नहीं हैं। यही वजह है कि वैधानिक रूप से परंपराओं की रक्षा की गई है। बता दें कि पिछले साल 16 दिसंबर को उपाध्याय की ओर से यह याचिका दाखिल हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस भी जारी किया था।
उपाध्याय ने जनहित याचिका दाखिल में सर्वोच्च न्घ्यायालय से तलाक के कानूनों में विसंगतियों को दूर करने के लिए कदम उठाने की बाबत केंद्र सरकार को निर्देश देने की गुजारिश की है। याचिका में दलील दी गई है कि शीर्ष अदालत तलाक के मसले पर धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर पूर्वाग्रह नहीं रखते हुए सभी नागरिकों के लिए समान कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश जारी करे। याचिका में गुजारिश की गई है कि सुप्रीम कोर्ट यह घोषणा करे कि तलाक के पक्षपातपूर्ण आधार अनुच्छेद 14, 15, 21 का उल्लंघन करते हैं इसलिए सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार के बारे में दिशानिर्देश जारी किए जाएं।

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