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जमानत आदेश जेल अधीक्षकों को ईमेल से भेजा जाए, इस सुझाव पर सुप्रीम कोर्ट जारी कर सकता है आदेश

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नई दिल्ली, एजेंसी। कई बार होता है कि सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बाद भी व्यक्ति कई दिन तक रिहा नहीं हो पाता क्योंकि कोर्ट के आदेश के जेल पहुंचने में देरी होती है। ऐसा ही आगरा सेंट्रल जेल में बंद 13 कैदियों के साथ हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने अपराध के वक्त नाबालिग होने के आधार पर उन्हें तत्काल जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था लेकिन उनकी रिहाई में करीब चार दिन का वक्त लग गया। सोमवार की देर शाम कैदियों की रिहाई हो पाई।
कैदियों के वकील ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में यह मामला उठाया और जमानत आदेश पहुंचने की प्रक्रिया में देरी की बात करते हुए सुझाव दिया कि कोर्ट का आदेश स्कैन कर ईमेल के जरिए संबंधित जेल अधीक्षक को भेजा जाना चाहिए ताकि जमानत मिलने के बाद रिहाई में बेवजह की देरी न हो। कोर्ट ने सुझाव पर विचार करने और इस संबंध में प्रशासनिक स्तर पर आदेश जारी करने की बात कही।
बीते आठ जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड के अपराध के वक्त सभी 13 कैदियों के नाबालिग होने के आदेश को देखते हुए सभी को जमानत दी थी और निजी मुचलके पर तत्काल रिहा करने का आदेश दिया था। मंगलवार को कैदियों के वकील ऋषि मल्होत्रा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि जमानत मिलने के चार दिन बाद 12 जुलाई को रात करीब नौ बजे कैदियों की रिहाई हो सकी। मल्होत्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट स्पीड पोस्ट से जमानत का आदेश भेजता है जिसके कारण आदेश पहुंचने में देर होती है।
मल्होत्रा ने कोर्ट आफीसर के तौर पर सुझाव देते हुए कहा कि जब कभी कोर्ट से जमानत आदेश जारी होते हैं तो उन्हें स्कैन कराकर संबंधित जेल अधिकारियों को ईमेल के जरिये भेजा जाए। जेल अधिकारी उस आदेश को सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार या उसकी वेबसाइट से प्रमाणित कर सकता है। उन्होंने कहा कि इससे समय की बचत होगी। मल्होत्रा के सुझाव पर न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह इस बारे में प्रशासनिक स्तर पर आदेश जारी करेगी।
उच्च शिक्षण संस्थानों में यह स्थिति तब है, जब देश में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति आने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में बड़े सुधार को लेकर तेजी से काम चल रहा है। हालांकि नीति में ऐसी स्थिति को लेकर सतर्क किया गया है। इसमें उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों के पदों को लंबे समय तक खाली न रखने की सिफारिश की गई है। माना जा रहा है कि इसे देखते हुए कोरोना काल में कार्यकाल पूरा कर रहे जेएनयू सहित कई विश्वविद्यालयों के कुलपति को मंत्रालय ने नई नियुक्ति होने तक पदों पर रहने के निर्देश दिए थे। गौरतलब है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलपति के खाली पदों को भरने की कोशिशें पिछले कई महीनों से चल रही थीं। लेकिन यह काम पूरा नहीं हो पाया और इससे पहले कैबिनेट में फेरबदल हो गया। इसमें शिक्षा मंत्रालय की जिम्मेदारी धर्मेंद्र प्रधान को मिल गई है।
मौजूदा समय में जिन विश्वविद्यालयों में कुलपति के पद खाली हैं, उनमें जेएनयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, असम विश्वविद्यालय, मणिपुर विश्वविद्यालय, नार्थ-ईस्टर्न हिल यूनिवर्सिटी-शिलांग, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय-छत्तीसगढ़, सागर विश्वविद्यालय- मध्य प्रदेश, बिहार और जम्मू-कश्मीर के दो-दो केंद्रीय विश्वविद्यालय, दिल्ली स्थित दो केंद्रीय संस्त विश्वविद्यालय शामिल हैं। इसके अलावा हरियाणा, राजस्थान, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु और नगालैंड का एक-एक केंद्रीय विश्वविद्यालय भी इनमें शामिल है।

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