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सीएम के निर्वाचन में बढ़ी सबकी दिलचस्पी

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-नौ सितंबर तक लेनी है मुख्यमंत्री को विधानसभा की सदस्यता
देहरादून। सल्ट उपचुनाव के परिणाम सामने आने के बाद अब, सीएम तीरथ सिंह रावत के चुनावी पत्ते का इंतजार बढ़ गया है। तीरथ को नौ सितंबर तक विधानसभा की सदस्यता लेनी है। इस लिहाज से उन्हें इसी महीने अपने लिए चुनावी क्षेत्र का भी चयन करना होगा। तीरथ सिंह रावत ने दस मार्च को सीएम पद की शपथ ली थी। चूंकि तीरथ अभी विधायक नहीं है, इसलिए उन्हें नौ सितंबर तक विधानसभा सदस्यता लेनी है। अब जब सल्ट उपचुनाव का परिणाम निकल चुका है तो इस बात पर सस्पेंस और बढ़ गया है कि तीरथ के लिए कौन सा विधायक सीट खाली करेगा। निर्वाचन प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक उपचुनाव में भी सामान्य तौर पर तीन से चार महीने का समय लग जाता है। ऐसे में यदि किसी सीट पर सितंबर में चुनाव कराना है तो इसके लिए, मई तक सीट रिक्त भी घोषित करनी होगी। दूसरी तरफ सितंबर में उपचुनाव हुए तो इसके चार महीने बाद दिसंबर अंत या जनवरी में प्रदेश में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हो जाएगी। इस कारण सीएम के निर्वाचन में सबकी दिलचस्पी बढ़ गई है।
गंगोत्री सीट भी चल रही है रिक्त: गंगोत्री विधायक गोपाल सिंह रावत का भी गत 22 मार्च को निधन हो गया है। इस कारण यह सीट वर्तमान में रिक्त चल रही है। इस कारण गंगोत्री सीट से भी चुनाव लड़ने का विकल्प सीएम के सामने है। हालांकि गंगोत्री उनके लिए नया चुनावी रणक्षेत्र होगा। हालांकि अभी विधानसभा ने निर्वाचन आयोग को सीट रिक्त होने की सूचना नहीं दी है।
खंडूड़ी सांसद के साथ सबसे अधिक समय तक रहे सीएम
राज्य में तीरथ सिंह रावत से पहले भी तीन बार सांसद, सीएम बन चुके हैं। इनमें बीसी खंडूड़ी ने सीएम बनने के पांच माह छह दिन बाद संसद से इस्तीफा दिया, जो बतौर सांसद सीएम सबसे लंबा कार्यकाल है। इसके बाद विजय बहुगुणा ने सीएम बनने के चार महीने दस दिन संसद सदस्यता छोड़ी, जबकि हरीश रावत के सीएम बनने के तीन महीने 26 दिन बाद उनका बतौर सांसद कार्यकाल पूरा हुआ। विधायी मामलों के जानकार विधानसभा के पूर्व सचिव जगदीश चंद्र के मुताबिक किसी भी व्यक्ति के लिए दो सदनों में निर्वाचित होने पर 14 दिन के भीतर किसी एक सदन से इस्तीफा देना होता है। इसी तरह सांसद या गैर विधायक के सीएम बनने पर उन्हें छह महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी होती है। यदि इस दौरान संबंधित व्यक्ति विधायक नहीं बनता है तो उन्हें सीएम के पद से इस्तीफा देना होगा, अलबत्ता बतौर सांसद वो अपना कार्यकाल पूरा कर सकते हैं।

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