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सिस्टम सुन्न है और रोजाना लाशों के ढेर लग रहे

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देहरादून। देहरादून में सिस्टम सुन्न है और रोजाना लाशों के ढेर लग रहे हैं। आज फिर 75 से ज्यादा मरीजों की जान देहरादून जनपद में गई है। इससे समझा जा सकता है कि उत्तराखण्ड में स्वास्थ्य सेवाओं के लिये कर्ताधर्ताओं ने बीते 20 सालों में क्या किया। अफसर कागजी खानापूर्ति करते रहे तो नेता जुबानी घोड़े दौड़ाते रहे। नतीजा, कोरोना के आगे पूरा सिस्टम फेल हो गया है। सबसे बड़ी हैरानी की बात यह कि बीते वर्ष मार्च में उत्तराखण्ड में दस्तक देने वाले कोरोना बीते साल से लेकर अभी तक छह माह का समय भी हमारे इसी सिस्टम को दिया था कि सुधर जाओ लेकिन नहीं। वही ढाक के तीन पात वाली स्थिति बनी रही। कुछ करने के बजाय हम खुशफहमी में जीते रहे कि अब तो कोरोना वापस चला गया है लेकिन नहीं जिस मौके के इंतजार में कोरोना बैठा था उसका मौका मिलते ही उसने इतना जबरदस्त हमला किया कि जिस राजधानी देहरादून के सरकारी व गैर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकारें इतराती नहीं फिरती थी उसने उन सब को अपनी औकात का एहसास करा डाला। आज देहरादून के सरकारी व गैर सरकारी दोनों अस्पतालों का सिस्टम पूरी तरह से चरमरा चुका है। रोजाना देहरादून में कभी 50, कभी 60 तो कभी 70 से भी ज्यादा मौतें हो रही हैं लेकिन सब सुनपट है। सिस्टम जवाब दे चुका है और जुबानी जंग के जरिए खुद को साबित करने के प्रयास चल रहे हैं। अस्पतालों के हाल ये हैं कि एक अदद ऑक्सीजन बेड के लिए मरीज गिड़गिड़ा रहे हैं। द्बष्ह्व तो बहुत दूर ही बात है। आक्?सीजन सिलिंडर और रेमिडीसीवीर तो हर किसी के भाग्य में ही नहीं है। जिसका जुगाड़ उसके लिए इंतजाम बस। बाकी सब गोल।

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