केंद्रीय बिजली मंत्री ने कहा, मुफ्त बिजली का वादा देश को अंधकार में डालने की साजिश
नई दिल्ली, एजेंसी। राजनीतिक दलों की तरफ से मुफ्त बिजली देने का फार्मूला आजमाने की कोशिश थमती नजर नहीं आ रही। बिजली मंत्री आरके सिंह मानते हैं कि जो राजनीतिक दल ऐसा वादा कर रहे हैं, वह देश को अंधकार में डुबाने का काम कर रहे हैं। यही नहीं, मुफ्त चुनावी रेवड़िघ्यों के इस तरीके से देश की आर्थिक प्रगति पर काफी बुरा प्रभाव पड़ना तय है। देश में बिजली क्षेत्र की मौजूदा स्थिति पर दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन ने उनसे बातचीत की। प्रस्तुत हैं मुख्य अंश रू
इसका जवाब देने से पहले मैं कुछ आंकड़े आपके समक्ष रखना चाहूंगा। अभी हमारे देश में बिजली की मांग 2़15 लाख मेगावाट है। पिछले साल के मुकाबले रोजाना मांग में 25 हजार मेगावाट की वृद्घि हुई है जो काफी ज्यादा है। 2030 तक हमारी खपत मौजूदा 1450 अरब यूनिट सालाना से बढ़कर 2900 अरब यूनिट हो जाएगी। हमें मौजूदा स्थापित क्षमता 4़04 लाख मेगावाट से बढ़ाकर 8़20 लाख मेगावाट करनी होगी। इसके लिए लाखों करोड़ रुपये का निवेश चाहिए। बैंक बिजली सेक्टर को कर्ज देने के लिए बहुत उत्साहित नहीं है। वजह यह है कि पूर्व में उनके 70 हजार करोड़ रुपये डूब चुके हैं। ऐसी स्थिति में हम जो हर साल 50 हजार मेगावाट अतिरिक्त बिजली क्षमता जोड़ना चाहते हैं, उसके लिए आवश्यक निवेश कहां से आएगा? राज्य सरकारों पर 1़35 लाख करोड़ रुपये का बकाया है जो उन्होंने अपनी बिजली वितरण कंपनियों (डिस्काम) को नहीं दिया है। इसमें 76 हजार करोड़ रुपये सब्सिडी का बकाया है। यह बहुत खतरनाक स्थिति है। जिसे जनता को मुफ्त बिजली देनी है, वह दे लेकिन इसकी राशि का भुगतान डिस्काम को जरूर करे। नहीं तो देश अंधकार में डूब सकता है और आर्थिक प्रगति बुरी तरह से बाधित हो जाएगी।
हमारे मंत्रालय ने देश के अधिकांश राज्यों की आर्थिक स्थिति का आकलन करवाया है कि वह बिजली की चुनावी रेवड़िघ्यों की स्थिति में हैं या नहीं। अधिकांश राज्यों की स्थिति ऐसी नहीं है कि वह अपनी जनता को मुफ्त बिजली दे सकें। एक उदाहरण मैं पंजाब का देता हूं। वहां हाल ही में संपन्न चुनाव में बड़े पैमाने पर मुफ्त बिजली देने का वादा किया गया और अब उसे लागू किया गया है। वर्ष 2021-22 में राज्य सरकार का कुल राजस्व (अपना व केंद्र से मिला हिस्सा) 81,684 करोड़ रुपये था जबकि इस दौरान सिर्फ वैधानिक जरूरी खर्चे (वेतन, पेंशन, कर्ज का ब्याज समेत भुगतान) ही 85,499 करोड़ रुपये के थे। अब राज्य सरकार पर कुल बिजली सब्सिडी का बोझ 13,443 करोड़ रुपये का है जो चालू वित्त वर्ष में बढ़कर 15,846 करोड़ रुपये का हो जाएगा। पंजाब, दिल्ली, राजस्थान, तमिलनाडु जैसे तमाम राज्य अपनी हैसियत से काफी ज्यादा कर्ज ले रहे हैं और मुफ्त बिजली दे रहे हैं। जो मुफ्त बिजली का वादा कर सरकार बना रहे हैं, उन्हें चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए।
घरेलू कोयले की कमी होने से आयात बढ़ाना पड़ता है और आयातित कोयला महंगा होता है। मोटे तौर पर आयातित कोयले को घरेलू कोयले में मिश्रित करने से बिजली की प्रति यूनिट कीमत में 40-50 पैसे की वृद्घि हुई है। लेकिन हम इसे कम करने के दूसरे तरीके अपना रहे हैं। इससे धीरे-धीरे रिन्घ्यूएबल एनर्जी की हिस्सेदारी कुल ऊर्जा उपलब्धता में बढ़ रही है। सोलर, पवन, हाइड्रो क्षेत्र की बिजली सस्ती है। मोटे तौर पर भारत में अभी उपभोक्ताओं को औसतन प्रति यूनिट 4़75 रुपये के करीब चुकाने पड़ रहे हैं। बिजली की कीमत के मामले में भारत की स्थिति बहुत ही अच्छी है। सबसे सस्ती दर पर बिजली उपलब्ध कराने वाले देशों मे भारत शामिल रहेगा।