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चीन-नेपाल के इस समझौते से क्घ्यों चिंतित हुआ भारत

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नई दिल्ली, एजेंसी। चीन ने एक बार फिर से महत्घ्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (ठमसज ंदक त्वंक पदपजपंजपअम- ठत्प्) नेपाल को अपने झांसे में फंसाने की कोशिश तेज कर दी है। उसने नेपाल में बीआरआई प्रोजेक्ट्स को आगे बढ़ाने के लिए नेपाल के साथ एक नया समझौता कर लिया है। चीन ने कहा है कि अक्टूबर 2019 में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफघ्ंिग की नेपाल यात्रा के दौरान लिए गए फैसलों को दोनों देशों के विकास और समृद्घि के लिए लागू किया जाना चाहिए। चीन ने कहा है कि यह द्विपक्षीय संबंधों का आधार बनेंगे। नेशनल पीपुल्स कांग्रेस आफ चाइना के चेयरमैन ली झांशाऊ अपने काठमांडू दौरे के दौरान ली झांशाऊ राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी, प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा, पूर्व पीएम केपी ओली और पुष्प कमल दहल सहित अन्य महत्वपूर्ण लोगों से मुलाकात करेंगे। आखिर भारत इस समझौते से क्घ्यों चिंतित है। क्या है चीन की बड़ी चाल।
विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि नेपाल को इस बात का बखूबी अंदाजा है कि चीन की बीआरआई परियोजना के झांसे में जो भी देश फंसे हैं, उनका परिणाम क्या हुआ है। उन्घ्होंने कहा कि श्रीलंका और पाकिस्तान का उदाहरण दुनिया के सामने है। नेपाल ने कुछ महीने पहले ही चीन के एक हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को रद कर दिया था। नेपाल को चीन भले ही बीआरआई परियोजना का हिस्सा बनाने के लिए बड़े-बड़े सपने दिखाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन शायद नेपाल भी कहीं न कहीं इसे लेकर सजग है। इसलिए नेपाल में बीआरआई का कोई बड़ा प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो सका है।
प्रो पंत का कहना है कि भारत शुरू से इस परियोजना का विरोधी रहा है। भारत ने कई अंतरराष्घ्ट्रीय मंचों पर इस परियोजना की निंदा की है। दरअसल, चीन इस परियोजना के जरिए भारत के पड़ोसी मुल्घ्कों से समझौता कर भारत के खिलाफ दबाव बनाने की रणनीति बनारहा है। चीन की मंशा को देखते हुए भारत ने शुरू से ही इस परियोजना का विरोध किया है। भारत ने अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सवाल भी उठाया है। दरअसल, इस परियोजना का एक हिस्घ्सा पाकिस्घ्तान के कब्घ्जे वाले भारतीय क्षेत्र से होकर गुजरता है। चीन इस परियोजना के जरिए भारत को सामरिक रूप से घेरने का प्रयास कर रहा है। यही कारण रहा है कि अंतराष्घ्ट्रीय मंचों पर भी भारत ने बीआरआई परियोजना का विरोध किया है। यदि इस परियोजना पर ब्रेक लगता है तो भारत के प्रति चीन की स्ट्रिंग आफ पर्ल की नीति को भी गहरा धक्घ्का लगेगा।
इसके अलावा भी भारत के समक्ष एक और बड़ी चिंता है। दरअसल, चीन ने इस परियोजना के तहत भारत के पड़ोसी मुल्घ्कों श्रीलंका, पाकिस्घ्तान, बांग्घ्लादेश और नेपाल को भारी कर्ज दे रखा है। अगर यह योजना अधर में लटकी तो चीन अपने कुचक्र में इन मुल्घ्कों को फंसा सकता है। यदि ये मुल्घ्काण चुकाने में विफल रहे तो चीन इन देशों को अपना उपनिवेश बना सकता है। इनको ब्घ्लैकमेल कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो यह सीधे तौर पर भारत के सामरिक और रणनीतिक हितों को जबरदस्घ्त चुनौती देगा।
इस योजना के तहत चीन ने पूरी दुनिया में अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए 65 देशों को जोड़ने की योजना बनाई है। इसमें एशिया, यूरोप और अफ्रीका के देश शामिल हैं। दरअसल, यह परियोजना छह आर्थिक गलियारों की मिली-जुली योजना है। इसके तहत रेलवे लाइन, सड़क और बंदरगाह और अन्घ्य आधारभूत ढांचे शामिल हैं। इसके तहत तीन जमीनी रास्घ्ते होंगे। इनकी शुरुआत चीन से होगी। इसके तहत पहला मार्ग मध्घ्य एशिया और पूर्वी यूरोप के देशों की ओर जाएगा। इस मार्ग के जरिए चीन की पहुंच कघ्र्गििस्घ्तान, ईरान, तुर्की से लेकर ग्रीस तक हो जाएगी। दूसरा, मध्घ्य मार्ग मध्घ्य एशिया से होते हुए पश्चिम एशिया और भूमध्घ्य सागर की ओर जाएगा। इस मार्ग से चीन, रूस तक जमीन के रास्घ्ते व्घ्यापार कर सकेगा। इस योजना के तहत तीसरा मार्ग दक्षिण एशियाई देश बांग्घ्लादेश की ओर जाएगा। इसके साथ पाकिस्घ्तान के सामरिक रूप से अहम बंदरगाह ग्घ्वादर को पश्चिम चीन से जोड़ने पर भी कार्य हो रहा है।

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