उत्तराखंड

सनातन धर्म का प्रमुख पर्व है अक्षय तृतीया-पंडित अधीर कौशिक

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हरिद्वार। श्री अखण्ड परशुराम अखाड़े के अध्यक्ष पंडित अधीर कौशिक ने सभी को अक्षय तृतीया की बधाई दी। बधाई देते हुए पंडित अधीर कौशिक ने कहा कि सनातन धर्म में वैशाख मास का काफी महत्व है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का पर्व मनाया जाता है। इसी दिन परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। अक्षय तृतीया का पर्व बेहद शुभ और सौभाग्यशाली माना जाता है। इस दिन स्नान, दान, जप, तप, श्राद्घ और अनुष्ठान का बहुत महत्व है। भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम का अवतार अक्षय तृतीया को ही हुआ था। इसलिए इस दिन को परशुराम अवतरण दिवस के रूप में भी मनाते हैं। पौराणिक मान्यता है कि भंडार और रसोई की देवी माता अन्नपूर्णा का जन्म भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। अक्षय तृतीया को मां अन्नपूर्णा की भी पूजा की जाती है। मां अन्नपूर्णा के प्रसन्न हो जाने पर कभी भी अन्न के भंडार खाली नहीं रहते। संपन्ना और खुशहाली रहती है। अक्षय तृतीया को ही भगवान श्रीष्ण के बाल सखा सुदामा की मुलाकात श्रीष्ण से हुई थी। अक्षय तृतीया को भगवान श्रीष्ण ने द्रौपदी को अक्षय पात्र प्रदान किया था। राजा भगीरथ की हजारों साल की तपस्या के बाद अक्षय तृतीया को ही गंगा पृथ्वी पर आयी थी और राजा भगीरथ के पूर्वजों को मोक्ष प्रदान किया था।
पंडित अधीर कौशिक ने कहा कि अक्षय तृतीया पर दान करने वाले व्यक्ति को वैकुंठ धाम में जगह मिलती है, इसलिए इसे दान का महापर्व माना गया है। इस दिन गंगा स्नान करके जौ का दान अवश्य करना चाहिए। इससे मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। अक्षय तृतीया पर कलश का दान व पूजन अक्षय फल प्रदान करता है। जल से भरे कलश को मंदिर या किसी जरूरतमंद को दान करने से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पा प्राप्त होती है। साथ ही पितरों को भी अक्षय तृप्ति प्राप्त होती है और नवग्रह की शांति होती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय तृतीया के दिन श्रीरामचरित मानस का पाठ करना चाहिए। साथ ही भगवान विष्णु के दसावतार की कथा का पाठ करना चाहिए। पाठ करने सेाषियों और महान संतों के दर्शन का फल मिलता है। अक्षय तृतीया पर तुलसी की जड़ को दूध से सींचे। भगवान विष्णु की पूजा को तुलसी पत्र के बिना अधूरी मानी जाती है। ऐसा करने पर भगवान विष्णु की विशेष पा प्राप्त होती है।

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