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बीजेपी का आरोप, रघुवंश बाबू की मौत का कारण राजद के युवराजों द्वारा दी गई मानसिक प्रताड़ना

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पटना, एजेंसी। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता अरविंद कुमार सिंह ने कहा है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह की मौत का एक बड़ा कारण राजद के युवराजों द्वारा उन्हें दी गयी मानसिक प्रताड़ना भी है।
भाजपा प्रवक्ता ने कहा है कि जिस व्यक्ति ने संगठन को खड़ा करने का काम किया, वैसे व्यक्ति के बारे में युवराजों ने ओछी बातें कहीं, जिससे उन्हें गहरा आघात लगा। क्या तेजस्वी यादव सार्वजनिक मंच पर आकर बतायेंगे कि रघुवंश बाबू के अधूरे सपनों को पूरा करने में वे क्या कदम उठाएंगे?
पूर्व केन्द्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह दुनिया को अलविदा कह गये। जाते-जाते वह अपने दोस्त या नेता लालू प्रसाद से विदा ले गये। उन्होंने तीन दिन पहले ही राजद प्रमुख लालू प्रसाद को सादे पन्ने पर पत्र लिखकर कहा था ‘32 वर्ष तक आपकी पीठ पर खड़ा रहा, लेकिन अब नहीं ़.़’। उनके उस पत्र को पार्टी से इस्तीफा मानकर लालू प्रसाद ने भी जवाब दिया ‘़.़आप कहीं नहीं जा रहे, समझे’।
वेंटिलेटर पर जाने के पहले रघुवंश बाबू ने कई पत्र लिखे। सिर्फ इस्तीफे वाला पत्र एक डायरी के पन्ने पर था। शेष सभी लेटर हेड पर। पत्र उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी लिखा। उनसे कई मांगे की। सभी पत्र दस सितम्बर को ही लिखे गये लेकिन जारी किया गया एक दिन के अंतराल पर।
दरअसल रघुवंश सिंह ना सिर्फ राजद के निर्माता और मार्गदर्शक थे बल्कि पार्टी प्रमुख लालू प्रसाद के भी वह बहुत करीब थे। वह हर संकट की घड़ी में लालू प्रसाद की पीठ पर सचमुच खड़े रहे। कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद जब नेता पद की होड मची तो सभी वरीय नेताओं को उन्होंने दरकिनार कर दिया और लालू प्रसाद को नेता बना दिया। पारिवारिक उलझनों को भी सलटाने में मदद की। शायद यही वजह रही होगी कि रघुवंश बाबू राजद छोड़ने की बात सीधे तौर पर कहने की हिम्मत नहीं जुटा सके और इशारों में ही सबकुछ कह गये।
रघुवंश सिंह ने राजद और लालू प्रसाद को नसीहत देते हुए एक और पत्र लिखा था। उस प्रत्र में गणित का वह प्रोफेसर बिल्कुल दार्शिनिक लग रहा था। उन्होंने कहा ‘राजनीति मतलब बुराई से लड़ना, धर्म मतलब अच्छाई करना। वर्तमान राजनीति में इतनी गिरावट आई है कि लोकतंत्र पर खतरा है। कुछ पार्टियां सीटों की खरीद-बिक्री करती हैं। महात्मा गांधी, जय प्रकाश नारायण, डा लोहिया, बाबा साहेब और कर्पूरी ठाकुर ने कठिनाइयां सही लेकिन डगमगाये नहीं़.़.।’

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