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कांग्रेस-सपा की रार: अखिलेश मप्र में उतार सकते हैं 50 प्रत्याशी

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लखनऊ , एजेंसी। मप्र के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और सपा अलग-अलग चुनाव लड़ने जा रहे हैं। इंडिया गठबंधन के बनने के बाद ऐसा लग रहा था कि यह दोनों पार्टियां वोटों का बंटवारा रोकने के लिए चुनावी समझौता कर सकती है। चुनावी समझौता तो नहीं हुआ लेकिन इन दोनों पार्टियों के बीच तल्खी इतनी बढ़ गई कि राहुल गांधी को अखिलेश यादव को फोन करना पड़ा।
सूत्रों के अनुसार राहुल और अखिलेश की बात के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि इंडिया गठबंधन लोकसभा चुनावों के लिए है ना कि राज्यों के चुनावों के लिए। लेकिन दोनों पार्टियों के नेताओं को एक-दूसरे के लिए ऐसी भाषा का प्रयोग करने से बचना चाहिए जो आपस में तल्खी पैदा करे और बीजेपी को हमले करने के अवसर दे। अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि कांग्रेस और सपा दोनों ही मप्र सहित किसी भी राज्य के चुनाव में किसी तरह की सीट शेयरिंग पर बात नहीं करने जा रहे हैं। पांच राज्यों के चुनाव परिणामों के बाद जब देश में आम चुनावों की तैयारी शुरू हो जाएंगी तब यह दोनों पार्टियां एक दूसरे से लोकसभा चुनावों पर चर्चा करेंगी।
सपा अब मप्र के चुनावों को लेकर गंभीर हो गई है। करीब 33 सीटें ऐसी हैं जहां सपा ने अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं। सूत्रों के अनुसार इस विवाद के बाद सपा अपनी प्रत्याशियों की संख्या बढ़ाने जा रही है। 50 ऐसी सीटें हो सकती हैं जहां से सपा अपने उम्मीदवार खड़े करे। राजनीतिक जानकार यह बात कहते हैं कि सपा इतनी सीटों पर अपना प्रभाव नहीं रखती है लेकिन इस विवाद के बाद वह जरूर अपनी राजनीतिक ताकत दिखाना चाहेगी।
सपा और कांग्रेस का गठबंधन बनते-बनते रह गया। सीटों को लेकर यह बातचीत कमलनाथ और दिग्विजिय के स्तर पर तक पहुंच गई थी। कांग्रेस के मप्र प्रभारी रणदीप सुरजेवाला और सपा नेता राम गोपाल वर्मा के बीच भी कई स्तर की बातचीत हुई थी। बावजूद इसके यह गठबंधन नहीं बन सका। इसकी तीन प्रमुख वजहें सामने आईं।
सपा ने कांग्रेस से दस सीटें मांग रही थी। यह वह सीटें हैं जहां बीते चुनावों में सपा को मिलने वाले वोट अच्छी संख्या में हैं। साथ ही यादव मतदाता भी वहां ठीक-ठाक संख्या में हैं। कमलनाथ और कांग्रेस के बीच यह तय हुआ कि कुछ सीटें ऐसी होंगी जहां प्रत्याशी तो कांग्रेस का होगा लेकिन सिंबल साइकिल का होगा। बाद में उन प्रत्याशियों से सपा के सिंबल के साथ चुनाव लड़ने से साफ इंकार कर दिया ।
पांच राज्यों के इन चुनावों में कांग्रेस मजबूत हालत में है। वह राज्यों के चुनाव में इंडिया गठबंधन के सहयोगियों के साथ सीट शेयर करने में बहुत इच्छुक नहीं थी। सपा जरुर चाहती थी कि मप्र और राजस्थान में कांग्रेस कुछ सीटें उसके लिए छोड़ दे। कांग्रेस का स्टैंड साफ था कि वह राज्यों के चुनाव में समझौता नहीं करेगी। गठबंधन के ना बन पाने पर अखिलेश ने अपना यही दर्द बयां किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को यदि एलायंस नहीं करना था तो उसने बात क्यों शुरू की थी।
इस गठबंधन के ना बन पाने की तीसरी वजह इस पूरे मसले पर राहुल गांधी, प्रियंका और मल्लिकाअर्जुन खड़गे की चुप्पी थी। इन तीनों नेताओं ने एक बार भी सपा के किसी नेता के साथ कोई बात नहीं की। अजय राय ने जब बागेश्वर सीट की हार का ठीकरा सपा पर फोड़ा तब भी कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने इसका खंडन नहीं किया। दोनों तरफ के नेताओं की ओर से बयान आते रहे लेकिन कांग्रेस की टॉप लीडरशिप ने इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

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