गुलदार के हमले कम करने और बचने की दी जानकारी
जयन्त प्रतिनिधि।
पौड़ी : वन्य जीवों के हमलों पर अंकुश लगाने को लेकर वन विभाग और तितली ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में पौड़ी में आयोजित कार्यशाला में हिस्सा ले रहे वन विभाग के कार्मिकों को जानकारी दी गई कि कैसे गुलदार हमलावर हो रहे हैं और किस तरह से इन हमलों को कम करने सहित इनसे बचा भी जा सकता है। लीविंग विद लेपर्ड थीम पर फोकस करते हुए महाराष्ट्र में कैसे इस पर कार्य किया गया और इसके परिणाम भी काफी सकारात्मक आए इसकी भी जानकारी विशेषज्ञों ने दी।
विशेषज्ञों ने बताया कि गुलदार के आवास से लेकर उनकी भोजन की परिस्थतियों में भी बदलाव आ रहा है। सामान्य तौर पर ऐसा नहीं है कि हर गुलदार आदमखोर ही होगा। गुलदार के रियाशी इलाकों में दिखाई देने का मतलब भी ऐसा नहीं हो सकता है कि वह हमला ही करेगा। कुछ विशेष हालत होते हैं जब गुलदार आसान शिकार की तरफ ही मुड़ जाता है। मसलन यदि गुलदार की उम्र अधिक हो, शिकार करने में उसके दांत सक्षम न रह गए हो तो वह आसान शिकार ही कर पाएगा। पिंजरे में कैद हो जाने के बाद गुलदार को रेस्क्यू करने से लेकर उसकी जीवनशैली से जुड़ी तमाम जानकारी इस कार्यशाला में साझा की गई। गढ़वाल वन प्रभाग के डीएफओ स्वनिल अनिरुद्ध ने कहा कि वन्य जीवों के हमलों पर अंकुश लगाने और हमलों को कम करने के मकसद से विभाग जन जागरूकता अभियान चला रहा है। गांवों में लोगों से इस बाबत जानकारियां जुटाई जाती हैं। वहां से मिले फीडबैक के मुताबिक आवश्यक कदम उठाएं जाते है। कार्यशाला में विभागीय कार्मिकों के साथ ही ट्रस्ट के विशेषज्ञ राजेश भट्ट और संजय सौड़ी ने विस्तार से इस बाबत जानकारियां दी।