कोटद्वार-पौड़ी

बच्चों के लिए खतरा बन रहा मोबाइल फोन

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जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार।
मोबाइल ने इंसानी जीवन में इस तरह दखल दिया है कि उसने धीरे-धीरे सोचने समझने और सीखने की प्रवृत्ति को समाप्त करके रख दिया है। मोबाइल के अलावा लैपटॉप इंसान के लिए अगर सुविधाजनक रहे हैं तो इसके दुष्परिणाम इंसान को अंधेरे की तरफ ले जा रहे हैं। जहां से फिर निकलना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता है। मोबाइल के चलते युवा सोशल कटऑफ हो रहे हैं। उन पर इंटरनेट एडिक्शन हावी है। उनमें नींद की कमी और चेहरा उदास बना रहता है। पढ़ाई पर भी इसका कुप्रभाव पड़ता है। सिर दर्द और आंखों में रोशनी की कमी का भी वो शिकार हो रहे है।
अगर आपके बच्चे आपकी बातों पर ध्यान नहीं दे रहे है, कुछ चिड़चिड़ा सा दिखने लगे है, दोस्तों से भी दूर-दूर रह रहे है, पढ़ाई और खेलकूद से भी परहेज कर रहे है, धीरे-धीरे उन्हें धुंधला-धुंधला भी नजर आने लगा है तो अविलंब अपने बच्चों को चिकित्सा विशेषज्ञ के पास ले जाएं। चूंकि यह सभी लक्षण हैं तो आपके बच्चे के मन मस्तिष्क और दिल पर मोबाइल एडिक्शन यानि मोबाइल, टैब और स्क्रीन की लत का प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। विड़ंबना यह भी है कि फेसबुक पर बच्चों को अपनी पोस्ट पर लाइक अगर कम मिलते हैं तो उनमें मानसिक अवसाद जैसी स्थिति उभरने लगती है। यहीं से आपका बच्चा या बच्ची नशे जैसी प्रवृति की तरफ बढ़ता है और फिर धीरे-धीरे वो अपराध की दुनिया में प्रवेश कर जाता है। यहीं से उसके साथ उसके परिजन भी उसका खामियाजा भुगतते हैं। मोबाइल के बिना न रह पाना भी एक तरह का बिना बीमारी वाला रोग है, जो अदृश्य रहते हुए सब कुछ खत्म करने में लगा रहता है। मोबाइल, टैबलेट का अत्यधिक इस्तेमाल बच्चों के मस्तिष्क पर घातक प्रभाव डाल रहा है। सोशल नेटवर्क यानि फेसबुक, ट्विटर, वाट्सअप, मैसेंजर की लत अमूमन हर व्यस्क की अब जरूरत बनता जा रहा है तो यूथ विंग इसे इस्तेमाल कर रही है। अनजान लोगों से रिश्ते और नादानी में अपनी गोपनीय सूचनाओं का आदान-प्रदान घातक है। अपराधी प्रवृति के लोग आपके साथ जुड़कर आपको हर तरह ठगने का प्रयास करेंगे। मोबाइल इंसानी जीवन में जरूरी हो गया है, लेकिन इसमें सावधानी बरतनें की जरूरत है। मोबाइल को कभी भी सीधे कान पर लगाकर सुनने से परहेज करें और सोते समय मोबाइल को अपने से करीब पांच मीटर दूरी पर रखें। इसके रिडियेशन का दुष्प्रभाव दिमाग के अलावा दिल पर भी पड़ता है, जो भविष्य के लिए घातक बन सकता है। चिकित्सकों की मानें तो 12 साल से लेकर 16 और 17 साल तक की उम्र के बच्चे डिप्रेशन, एंजाइटी, अटैचमेंट, डिसॉर्डर और मायोपिया जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं। बीमारी के इजाफे में सबसे बड़ा कारण मोबाइल, टैब, लैपटॉप और वीडियो गेम का कंटीन्यू इस्तेमाल है। जिसका बच्चों के मन मस्तिष्क पर कुप्रभाव पड़ता है।
वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. दिनेश कुमार सिंह का कहना है कि इस कोरोना काल में बच्चे मोबाइल फोन का अधिक इस्तेमाल कर रहे है। चाहे स्कूल की पढ़ाई हो या उनका अपना मंनोरंजन इन सबसे बच्चों की आंखों में विभिन्न प्रकार के रोग पैदा हो सकते है। उन्होंने सलाह दी है कि मोबाइल में नीली स्क्रीन का उपयोग किया जाय तो काफी हद तक आंखे सुरखित रह सकती है। साथ ही उन्होंने बताया कि मोबाइल उपयोग के समय आंखों से कम से कम 25 सेमी. की दूरी बनाई रखनी चाहिए।

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