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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द किया ओबीसी आरक्षण, कहा- जल्द से जल्द कराएं निकाय चुनाव

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लखनऊ , एजेंसी। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश निकाय चुनावों को लेकर अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि ओबीसी आरक्षण के बगैर तत्काल स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएं। हाईकोर्ट के फैसले के बाद ओबीसी के लिए आरक्षित सभी सीटें अब जनरल मानी जाएंगी। कोर्ट ने 87 पेज के फैसले से राज्य सरकार को बड़ा झटका लगा है। अदालत ने निकाय चुनाव के लिए 5 दिसम्बर को सरकार के अनंतिम ड्राफ्ट आदेश को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को निकाय चुनावों को बिना ओबीसी आरक्षण के ही कराने के आदेश दिए हैं।
न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति सौरभ लवानिया की खंडपीठ ने यह फैसला इस मुद्दे पर दाखिल 93 याचिकाओं को मंजूर करके सुनाया। कोर्ट ने कहा कि बगैर ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता पूरी किए ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जाएगा। कहा चूँकि नगर पालिकाओं का कार्यकाल या तो खत्म हो चुका है या फिर खत्म होने वाला है, ऐसे में राज्य सरकारध् राज्य निर्वाचन आयोग तत्काल चुनाव अधिसूचित करेंगें। चुनाव की जारी होने वाली अधिसूचना में सांविधानिक प्रावधानों के तहत महिला आरक्षण शामिल होगा। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि ट्रिपल टेस्ट संबंधी आयोग बनने पर ट्रांसजेंडर्स को पिछड़ा वर्ग में शामिल किए जाने के दावे पर गौर किया जाएगा।
कोर्ट ने सरकार द्वारा गत 12 दिसंबर को जारी उस आदेश को भी खारिज कर दिया, जिसके जरिए सरकार ने उन स्थानीय निकायों में प्रशासक तैनात करने की बात कही थी, जिनका कार्यकाल शीघ्र पूरा होने जा रहा है। याचियों की ओर से दलील दी गई थी कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय किए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है। यह भी दलील दी गई कि ओबीसी को आरक्षित की गई सीटों को सामान्य मानते हुए चुनाव कराया जा सकता है।
उधर, राज्य सरकार की तरफ से इसका विरोध करते हुए कहा गया था कि आरक्षित सीटों को सामान्य नहीँ माना जा सकता। चुनाव के लिए सीटों के आरक्षण में सांविधानिक प्रावधानों समेत संबंधित कानूनी प्रक्त्रिस्या का पूरा पालन किया गया है। ऐसे में स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को ही आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा था कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। कहा है कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। पिछली सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है। इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर, 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।
जनहित याचिकाओं में निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को आरक्षण का उचित लाभ दिए जाने व सीटों के रोटेशन के मुद्दे उठाए गए थे । याचियों का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तहत, जब तक राज्य सरकार तिहरे परीक्षण की औपचारिकता पूरी नहीं करती तब तक ओबीसी को कोई आरक्षण नहीं दिया जा सकता। राज्य सरकार ने ऐसा कोई परीक्षण नहीं किया। यह भी दलील दी कि यह औपचारिकता पूरी किए बगैर सरकार ने गत 5 दिसंबर को अनंतिम आरक्षण की अधिसूचना के तहत ड्राफ्ट आदेश जारी कर दिया। इससे यह साफ है कि राज्य सरकार ओबीसी को आरक्षण देने जा रही है। साथ ही सीटों का रोटेशन भी नियमानुसार किए जाने की गुजारिश की गई थी। याचियों ने इन कमियों को दूर करने के बाद ही चुनाव की अधिसूचना जारी किए जाने का आग्रह किया था । राज्य सरकार की तरफ से इस दलील का विरोध करते हुए कहा गया था कि याचिकाएं खारिज किए जाने लायक हैं।
पहले, कोर्ट ने प्रदेश के नगर निकाय चुनावों की अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि सरकार ने ओबीसी कोटे का आरक्षण तय करने में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये ट्रिपल टेस्ट फामूर्ले का अनुपालन नहीं किया। वैभव पांडे सहित कई याचीगणों ने अलग-अलग याचिकाएँ दायर करके नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने में प्रक्रिया का पालन न करने का राज्य सरकार पर आरोप लगाया था। याचीगणों की ओर से दलील दी गई थी कि सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल सुरेश महाजन के मामले में दिये गये निर्णय में स्पष्ट तौर पर आदेश दिया था कि स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण जारी करने से पहले ट्रिपल टेस्ट किया जाएगा।यदि ट्रिपल टेस्ट की औपचारिकता नहीं की जा सकी है तो एससी व एसटी सीटों के अलावा बाकी सभी सीटों को सामान्य सीट घोषित करते हुए, चुनाव कराए जाएंगे। आरोप लगाया गया था कि शीर्ष अदालत के स्पष्ट दिशानिर्देशों के बावजूद राज्य सरकार ने बिना ट्रिपल टेस्ट के 5 दिसंबर 2022 को ड्राफ्ट नोटिफिकेशन जारी किया जिसमें ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को भी शामिल किया गया था।
रैपिड सर्वे में जिला प्रशासन की देखरेख में नगर निकायों द्वारा वार्डवार ओबीसी वर्ग की गिनती कराई जाती है। इसके आधार पर ही ओबीसी की सीटों का निर्धारण करते हुए इनके लिए आरक्षण का प्रस्ताव तैयार कर शासन को भेजा जाता है।
नगर निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण निर्धारित करने से पहले एक आयोग का गठन किया जाएगा, जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रति का आकलन करेगा। इसके बाद पिछड़ों के लिए सीटों के आरक्षण को प्रस्तावित करेगा। दूसरे चरण में स्थानीय निकायों द्वारा ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाएगा और तीसरे चरण में शासन के स्तर पर सत्यापन कराया जाएगा।
नगर निकाय के चुनाव को लेकर हाईकोर्ट का फैसला आने के तत्काल बाद ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यानाथ ने स्पष्ट कर दिया है कि नगर निकाय का चुनाव पिछड़ों को आरक्षण दिए बगैर नहीं कराएंगे। उन्होंने कहा कि पिछड़ों को आरक्षण देने के लिए पहले पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन करेंगे और इसके बाद ट्रिपल टेस्ट के आधार पर पिछड़ों के लिए आरक्षण तय किया जाएगा। इसके बाद ही नगर निकाय चुनाव कराएंगे। मुख्यमंत्री ने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के परिप्रेक्ष्य में सरकार कानूनी राय ले रही है। इसके बाद सरकार जरूरी हुआ तो सुप्रीम कोर्ट में अपील भी करेगी।
अपना दल (एस) के कार्यकारी अध्यक्ष और कैबिनेट मंत्री आशीष पटेल ने कहा कि ओबीसी आरक्षण के बिना निकाय चुनाव किसी भी दृष्टि से उचित नहीं हैं। हम इस संदर्भ में लखनऊ उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का अध्ययन कर रहे हैं। जरूरत पड़ी तो अपना दल (एस) ओबीसी के हक के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा।
कोर्ट में सुनवाई चलते रहने के कारण राज्य निर्वाचन आयोग के अधिसूचना जारी करने पर रोक लगा दी गई थी। मामले में याची पक्ष ने कहा था कि निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण एक प्रकार का राजनीतिक आरक्षण है। इसका सामाजिक, आर्थिक अथवा शैक्षिक पिछड़ेपन से कोई लेना देना नहीं है। ऐसे में ओबीसी आरक्षण तय किए जाने से पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई व्यवस्था के तहत डेडिकेटेड कमेटी द्वारा ट्रिपल टेस्ट कराना अनिवार्य है।
जिस पर राज्य सरकार ने दाखिल किए गए अपने जवाबी हलफनामे में कहा था कि स्थानीय निकाय चुनाव मामले में 2017 में हुए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के सर्वे को आरक्षण का आधार माना जाए। सरकार ने कहा है कि इसी सर्वे को ट्रिपल टेस्ट माना जाए। सरकार ने ये भी कहा था कि ट्रांसजेंडर्स को चुनाव में आरक्षण नहीं दिया जा सकता।सुनवाई में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किन प्रावधानों के तहत निकायों में प्रशासकों की नियुक्ति की गई है? इस पर सरकार ने कहा कि 5 दिसंबर 2011 के हाईकोर्ट के फैसले के तहत इसका प्रावधान है।
सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा आरक्षण विरोधी है। वह निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर घड़ियाली आंसू बहा रही है। आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक छीना है और कल बाबा साहब द्वारा दिए गए दलितों के आरक्षण को भी छीन लेगी। आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछड़ों एवं दलितों को सपा का साथ देना होगा। उन्होंने ऐलान किया कि जरूरत पड़ी तो पार्टी इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी।
सपा अध्यक्ष ने कहा कि भाजपा सरकार ने न केवल पिछड़ों को धोखा दिया है बल्कि बाबा साहब ड भीमराव अंबेडकर के संविधान को भी खत्म करने की साजिश की है। निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण खत्म करने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। न्यायालय के समक्ष जानबूझकर तथ्य प्रस्तुत नहीं किए गए। प्रदेश की 60 प्रतिशत आबादी को आरक्षण से वंचित कर दिया गया। भाजपा ने मनमानी प्रक्त्रिस्या अपने फायदे के लिए ही की थी। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी ने ड0 राममनोहर लोहिया और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी के विचारों को आत्मसात करके सदैव सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी है। जातिगत जनगणना और सामाजिक न्याय की मांग की है। भाजपा समाजवादी पार्टी की इस न्याय की लड़ाई से डरी है। भाजपा ने इससे पहले 17 अति पिछड़ी जातियों से भी झूठ बोला है। भाजपा सरकार की पिछड़ा विरोधी नीयत साफ हो गई है। भाजपा जो खुद नहीं कर पाती वह जनहित याचिका के माध्यम से करवाती है। अंत्योदय का जुमला देने वालों ने जिस तरह छल से समाज के पिछड़ों का हक, सम्मान और अधिकार छीनने का काम किया है वह लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
आरक्षण खत्म करने की साजिश
सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रो रामगोपाल यादव ने कहा कि निकाय चुनाव में ओबीसी का आरक्षण खत्म करने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। यह प्रदेश सरकार की आरक्षण खत्म करने की साजिश है। न्यायालय के समक्ष जानबूझकर तथ्य प्रस्तुत नहीं किए गए।
प्रोफेसर रामगोपाल ने ट्वीट कर सरकार पर उठाए सवाल
कोर्ट के निर्णय को लेकर सपा नेता रामगोपाल यादव ने सरकार पर कोर्ट में ठीक से पैरवी न करने के आरोप लगाए हैं। उन्होंने ट्वीट कर कहा कि निकाय चुनावों में ओबीसी का आरक्षण खतम करने का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। यह उत्तर प्रदेश सरकार की साजिश है। जानबूझकर तथ्य न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए गए। उन्होंने कहा कि ऐसा करके सरकार ने यूपी की 60 फीसदी आबादी को आरक्षण से वंचित किया। इस फैसले पर भाजपा के ओबीसी मंत्रियों की जबान पर ताले लग गए हैं। उन्होंने कहा कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की स्थिति बंधुआ मजदूर जैसी है।
शिवपाल ने किया आंदोलन का ऐलान
सपा विधायक शिवपाल सिंह यादव ने फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि सामाजिक न्याय की लड़ाई को इतनी आसानी से कमजोर नहीं होने दिया जा सकता है। आरक्षण पाने के लिए आंदोलन करना पड़ा था। अब बचाने के लिए उससे बड़ा आंदोलन किया जाएगा। कार्यकर्ता इसके लिए तैयार रहें।
आयोग की रिपोर्ट के बाद हो चुनाव : विश्वात्मा
यदुकुल पुनर्जागरण मिशन के संयोजक विश्वात्मा ने कहा हाईकोर्ट का फैसला पिछड़े वर्गों के लिए अफसोस जनक है। सरकार की ओर से गठित आयोग की रिपोर्ट आने तक निकाय चुनाव को टाल दिया जाए। आयोग की रिपोर्ट के आधार पर पिछड़े वर्गों को फिर से सीटों का आरक्षण सुनिश्चित नहीं किया आए। यदि प्रदेश सरकार पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिए बिना उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव कराती है तो यदुकुल पुनर्जागरण मिशन सख्त विरोध करेगा। पूरे प्रदेश में जन जागरण अभियान गांव गांव चलाएगा।
इस गलती की सजा ओबीसी समाज भाजपा को जरूर देगा रू मायावती
निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट का निर्णय आने के बाद बसपा प्रमुख ने भाजपा पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इस गलती की सजा ओबीसी समाज भाजपा को जरूर देगा। इस मामले पर सभी दलों की निगाह लगी थी। जैसे ही हाईकोर्ट से यह निर्णय आया इस पर प्रतिक्रियाएं शुरू हो गईं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी इस पर तत्काल ट्वीट किया। उन्होंने कहा कि ओबीसी के आरक्षण को लेकर सरकार की कारगुजारी का संज्ञान लेने पर हाईकोर्ट का फैसला सही मायने में भाजपा एवं उनकी सरकार की ओबीसी एवं आरक्षण विरोधी मानसिकता को प्रगट करता है। यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पूरी निष्ठा तथा ईमानादारी से अनुपालन करते हुए ट्रिपल टेस्ट द्वारा ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था का समय से निर्धारण करना था। तभी चुनाव की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जाना था जो सही से नहीं हुआ।
सरकार ने पिछड़ों का हक मारने के लिए जानबूझकर गलत आरक्षण कराया :संजय सिंह
नगर निकाय चुनाव कराने को लेकर हाईकोर्ट के फैसल आने के बाद आम आदमी पार्टी (आप) केप्रदेश प्रभारी और सांसद संजय सिंह ने सरकार पर जानबूझकर गलत आरक्षण करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले से स्पष्ट हो गया है कि भाजपा दलितों, पिछड़ों और शोषित वर्ग की विरोधी है। उन्होंने कहा कि सरकार यदि बिना पिछड़ों को बगैर आरक्षण दिए चुनाव कराती है तो आप आंदोलन करेगी। आप सांसद ने कहा कि जब आयोग का गठन करके आरक्षण दिया जाना था तो सरकार ने आयोग का क्यों नहीं किया। उन्होंने कहा कि भाजपा पिछड़ों का हक क्यों मार रही है। सरकार पहले नौकरी में आरक्षण छीना और अब चुनाव में आरक्षण छीन रही है।

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