बिग ब्रेकिंग

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- गर्भवती दुष्कर्म पीड़िताओं के लिए हर जिले में हो मेडिकल बोर्ड, जानें- पूरा मामला

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

नई दिल्ली, एजेंसी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक अहम फैसले में कहा है कि दुष्कर्म के चलते गर्भवती होने वाली पीडिघ्ता को उसके कानूनी अधिकारों के बारे में बताया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने ऐसे मामलों में 20 हफ्ते से ज्यादा के गर्भ को समाप्त करने पर फैसला करने के लिए जिला स्तर पर मेडिकल बोर्ड के गठन की मांग पर केंद्र से चार हफ्ते में जवाब मांगा है। मेडिकल टर्मिनेशन अफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा तीन के तहत गर्भ ठहरने के 20 हफ्ते बाद अदालत की अनुमति के बिना गर्भपात नहीं कराया जा सकता है।
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआइ) एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ दुष्कर्म से गर्भवती हुई 14 साल की पीड़िता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि अगर एक महिला दुष्कर्म के बाद गर्भवती हो जाती है तो उसे उसके कानूनी अधिकारों के बारे में बताया जाना चाहिए। पीठ में जस्टिस बीएस बोपन्ना भी शामिल थे।
पीड़िता के वकील वीके बीजू ने पीठ को बताया कि वह चिकित्सकीय परामर्श को देखते हुए अपनी मुवक्किल के 26 हफ्ते के गर्भ को गिराने की अनुमति नहीं मांग रहे हैं। वह चाहते हैं कि इस तरह के मामलों में पीड़िताओं को जानकारी देने के लिए हर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में जिला स्तर पर मेडिकल बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए। उनकी इस मांग पर पीठ ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते चार हफ्ते में जवाब देने को कहा। सुनवाई के दौरान बीजू ने कहा कि जब वह यह याचिका तैयार कर रहे थे, तब उन्होंने लड़की के माता-पिता के दर्द को महसूस किया था।
इस मामले में केंद्र की तरफ से पेश एडिशनल सलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पीठ ने कहा कि अगर इस तरह के मामलों को देखने के लिए स्थानीय स्तर पर कोई बोर्ड होता तो इसमें मदद मिलती। पीठ ने कहा, श्यह अलग मामला है, जिसमें राज्य को दुष्कर्म की जानकारी नहीं है। यदि दुष्कर्म की जानकारी हो, तो एक ऐसा तंत्र होना चाहिए जहां पीड़िता को पता चल सके कि क्या वह गर्भवती है और उसके क्या वैधानिक अधिकार हैं।श्
भाटी ने अदालत को बताया कि मेडिकल टर्मिनेशन अफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 लोकसभा में पास हो चुका है और राज्यसभा में इस पर बहस होनी है। इस विधेयक में इन सभी मुद्दों को शामिल किया गया है और वह इस मामले में विस्तृत हलफनामा दायर करेंगी।
इस मामले में पीड़िता ने कहा था कि एक रिश्तेदार ने उसके साथ दुष्कर्म किया था, जिसके बाद वह गर्भवती हो गई थी। शीर्ष अदालत ने दो मार्च को इस मामले में करनाल के जिला अस्पताल से रिपोर्ट मांगी थी कि क्या पीड़िता को गर्भपात को अनुमति देना संभव है या नहीं। अदालत ने केंद्र और हरियाणा सरकार से भी इस पर जवाब मांगा था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!