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निलंबित सांसदों की इस सत्र में वापसी का रास्ता बंद

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नई दिल्ली,एजेंसी। राज्यसभा से निलंबित 12 सदस्यों को इस सत्र के बचे हुए तीन दिन के लिए वापस लाने की कोशिश भी विफल हो गई है। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि इस सत्र में शेष समय भी सदन बाधित ही रहेगा। सोमवार को सरकार की ओर से बातचीत के लिए बुलाई गई बैठक की मंशा पर ही सवाल खड़ा करते हुए विपक्ष ने इसका बहिष्कार किया। वहीं सरकार ने आरोप लगाया कि विपक्ष दरअसल सदन चलाने और कानून पर चर्चा से ही भागना चाहता है। इसीलिए किसी-न-किसी बहाने अवरोध खड़ा कर रहा है। विपक्ष की रुचि सिर्फ शोर-शराबे में है।
राज्यसभा में सदन के नेता एवं केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि इसकी आशंका तभी हो गई थी, जब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने शुरुआत में ही माफी मांगने से मना कर दिया था। राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू के निर्देश पर सोमवार को संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने विपक्षी दलों की बैठक बुलाई। इसमें कांग्रेस, तृणमूल, माकपा, भाकपा और शिवसेना के नेताओं को बुलाया गया। विपक्ष ने इसका यह कहते हुए बहिष्कार किया कि सभी विपक्षी दलों के नेताओं को क्यों नहीं बुलाया गया। विपक्ष ने इसमें विपक्षी एकता तोड़ने की कोशिश देखी।
दूसरी तरफ, पीयूष गोयल ने साफ किया कि इन्हीं पांच दलों के सांसदों को निलंबित किया गया था। इसीलिए इन्हें बुलाया गया। फिर भी विपक्षी नेताओं को कोई आशंका थी तो बैठक में आकर बात करनी चाहिए थी। लेकिन वे नहीं आए, क्योंकि शुरू से उनकी मंशा सदन को बाधित करने की रही है। पीयूष गोयल ने राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की स्वीकार्यता पर भी सवाल उठाया और कहा कि विपक्ष में तो कई दल उन्हें अपना नेता मानते ही नहीं हैं। वह खुद कभी भी बैठक में उस अधिकार और विश्वास के साथ बात नहीं कर पाते हैं।
पीयूष गोयल ने परंपरा का हवाला देते हुए कहा कि 2010 में संप्रग सरकार के दौरान सात सांसदों को उनके आचरण के कारण निलंबित किया गया था तो तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने सबकी ओर से दो-दो बार माफी मांगी थी। हालांकि, उन निलंबित सांसदों में कोई भी भाजपा का नहीं था। उस वक्त सपा, राजद, लोजपा और जदयू के सदस्य निलंबित हुए थे।
जेटली के खेद जताने के बाद निलंबित सांसदों ने भी सभापति से माफी मांगी थी। तभी निलंबन वापस हुआ था। एक सांसद का निलंबन वापस नहीं हुआ था, क्योंकि उन्होंने माफी नहीं मांगी थी। यह सदन और सभापति के सम्मान का सवाल है। इसीलिए निलंबन वापसी में इसी परंपरा का पालन किया जाता है। लेकिन इस बार विपक्ष अड़ा हुआ है।
विपक्षी सांसदों के आचरण को पूरे देश ने देखा है। उन्हें तो देश से भी माफी मांगनी चाहिए थी।

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