श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही बदरीनाथ के ब्रह्म कपाल में पहुंचने लगे श्रद्धालु
चमोली : बदरीनाथ धाम के ब्रह्म कपाल तीर्थ में पित्रों का पिंडदान और उन्हें तर्पण देने का शास्त्रीय विधान और मान्यता है। श्राद्ध पक्ष में भारत के अलावा विदेशों से भी श्रद्धालु आस्था, श्रद्धा से अपने पित्रों का पिंडदान और तर्पण करने यहां पहुंच रहे हैं। ब्रह्मकपाल तीर्थ पुरोहित अध्यक्ष उमेश सती का कहना है कि श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही बदरीनाथ धाम स्थित ब्रह्म कपाल में श्रद्धालुओं की भीड़ जुटनी शुरू हो गई है। ब्रह्म कपाल में पितरों को पिंडदान का विशेष महात्म्य है। बताते हैं भारत और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों से तो श्रद्धालु अपने पूर्वजों का स्मरण, तर्पण और पिंडदान करने ब्रह्म कपाल में आते ही हैं। सनातन धर्म की गहरी मान्यता से प्रभावित होकर अब विदेशों से भी श्रद्धालु यहाँ आकर विधि विधान से अपने पित्रों का पिंडदान करते हैं तर्पण देते हैं। बताया स्कंदपुराण में इस पवित्र स्थान को गया से आठ गुना अधिक फलदायी तीर्थ कहा गया है। बदरीनाथ धाम से पांच सौ मीटर की दूरी पर स्थित ब्रह्मकपाल में अलकनंदा किनारे एक विशाल शिला मौजूद है। जहां हवन कुंड में पितरों के उद्धार के लिए पिंडदान कर हवन क्रिया की जाती है। तीर्थ पुरोहित विवेक सती, अजय सती, सुबोध हटवाल बताते हैं कि यदि किसी व्यक्ति की अकाल मृत्यु हो जाए। तो ब्रह्मकपाल में श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करने से दिवगंत की आत्मा को शांति मिलती है। बदरीनाथ मंदिर के पूर्व धर्माधिकारी भुवन उनियाल और पंडित उमेश सती कहते हैं कि तर्पण करने से पहले तप्तकुंड में स्नान करने के बाद तीर्थ पुरोहित के साथ ब्रह्म कपाल में पितरों का ध्यान किया जाता है। पितरों को श्रद्धा भक्ति से पूजने पर धन-धान्य में वृद्धि होती है। पितरों का श्राप देवताओं से भी अधिक कष्टकारी होता है। (एजेंसी)
ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हुए थे भगवान शिव
पौराणिक मान्यता है कि सृष्टि की उत्पति के समय कारणवश भोलेनाथ ने गुस्से में आकर ब्रह्मा के पांच सिरों में से एक को त्रिशूल के वार से काट दिया। तब ब्रह्मा के सिर त्रिशूल पर ही चिपक गए थे। ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए जब भोलेनाथ पृथ्वी लोक के भ्रमण पर गए तो बदरीनाथ से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर त्रिशूल से ब्रह्मा का सिर जमीन पर गिर गया। तभी से यह स्थान ब्रह्म कपाल के रुप में प्रसिद्ध हुआ। शिव भी इसी स्थान पर ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हुए थे। गो हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए स्वर्ग की ओर जा रहे पांडवों ने भी इसी स्थान पर अपने पितरों को तर्पण दिया था।