गरीबी और बिगड़ती अर्थव्यवस्था पर संतुलन बनाना जरूरी: सुको
नई दिल्ली, एजेंसी। चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त योजनाओं के ऐलान पर सुप्रीम कोर्ट में आज अहम सुनवाई हुई। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया है इस मामले पर जबतक विधायिका कोई कानून नहीं बनाती है, तबतक कोर्ट चुनाव के समय राजनीतिक पार्टियों के जरिए मुफ्त योजनाओं की घोषणा पर लगाम लगाने के लिए कोई कदम उठाए। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जाहिर की है। बता दें कि पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना ने मुफ्त योजनाओं से अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान पर चिंता जाहिर की। उन्होंने कहा कि लोगों का कल्याण और अर्थव्यवस्था के नुकसान के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की जाए। चीफ जस्टिस एन वी रमना और जस्टिस ष्ण मुरारी की पीठ ने गैर-जरूरी मुफ्त योजनाओं के मामले पर कहा कि वित्तीय अनुशासन बहाल करने की जरुरत है।
हालांकि उन्होंने बताया कि भारत जैसे देश में जहां गरीबी एक गंभीर समस्या है, वहां गरीबी को कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है। केंद्र का प्रतिनिधित्व करने वाले सलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, श्हम एक समिति का प्रस्ताव कर रहे हैं, जिसमें सचिव, केंद्र सरकार, प्रत्येक राज्य सरकार के सचिव, प्रत्येक राजनीतिक दल के प्रतिनिधि, नीति आयोग के प्रतिनिधि, आरबीआई, वित्त आयोग, राष्ट्रीय करदाता संघ और शामिल हैं।श्
उन्होंने कहा कि जब तक विधायिका के जरिए कोई उपाय सामने नहीं आता तब तक अदालत कुछ तय कर सकती है। एक वकील ने यह तर्क दिया कि अधिकांश मुफ्त योजना और उपहार किसी घोषणापत्र का हिस्सा नहीं रहता, लेकिन रैलियों और भाषणों के दौरान मुफ्त योजनाओं की घोषणा की जाती है । पीठ ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है और कहा कि जो लोग मुफ्त उपहार का विरोध कर रहे हैं, उन्हें वाकई विरोध करने का अधिकार है, क्योंकि वे टैक्स का भुगतान कर रहे हैं। गौरतलब है कि जो लोग टैक्स दे रहे हैं वो उम्मीद करते हैं कि पैसे का उपयोग बांटने की जगह उसे देश के विकास कार्यों के लिए किया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि विशेषज्ञ पैनल इसे मामले पर विचार कर सकते हैं।