Uncategorized

रंवाल्टी लोकबोली और साहित्य का संरक्षण जरूरी

Spread the love
Backup_of_Backup_of_add

नैनीताल। प्रदेश के सीमांत क्षेत्र की लोकबोली रंवाल्टी सहित जौनसारी, जौनपुरी, थारू, बुक्सा, रं आदि अन्य जनजातीय बोलियां व उनका साहित्य आज हाशिए पर है। यदि इनके संवर्धन व संरक्षण के लिए शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए तो निश्चित ही कुछ समय बाद यह लोकबोलियां हमारे अतीत का हिस्सा बन जायेंगी। लोकभाषा कुमाउंनी और गढ़वाली की तो फिर भी चर्चा हो जाती है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि रंवाई सहित अन्य जनजातीय बोलियों की चर्चा तक नहीं होती। उक्त विचार लोकसाहित्य के मर्मज्ञ वरिष्ठ साहित्यकार महाबीर रंवाल्टा ने कुमाऊं विश्वविद्यालय की रामगढ स्थित महादेवी वर्मा सृजन पीठ द्वारा %रंवाल्टी लोकसाहित्य º परंपरा और विकास% विषय पर फेसबुक लाइव के जरिए आयोजित ऑनलाइन चर्चा में व्यक्त किए। लोकबोलियों के संरक्षण के लिए विशेष ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसके लिए पृथक से पूर्ण साधन सम्पन्न अकादमी की स्थापना के साथ इस क्षेत्र में कार्यरत लोक साहित्यकारों को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम में महादेवी वर्मा सृजन पीठ के निदेशक प्रो. शिरीष कुमार मौर्य, शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत, वरिष्ठ साहित्यकार नवीन कुमार नैथानी, महावीर रंवाल्टी, डॉ. सिद्धेश्वर सिंह, जहूर आलम, केशव तिवारी, दिनेश कर्नाटक, मुकेश नौटियाल, उदय किरौला, संतोष कुमार तिवारी, डॉ. सुवर्ण रावत, चंद्रशेखर तिवारी, प्रबोध उनियाल आदि साहित्य प्रेमी मौजूद रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!