सांस्कृतिक कार्यक्रम में नंदा देवी राजजात जात्रा रही आकर्षण का केन्द्र
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। यूनिवर्सल सांस्कृतिक शोध नाट्य एकेडमी देहरादून के तत्वावधान में हिमालय की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं विकास हेतु पौराणिक एवं पारम्परिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में उत्तराखण्ड का पौराणिक लोक गाथा पर आधारित नंदा देवी राजजात जात्रा की प्रस्तुति कलाकारों ने दी। जो सभी के आकर्षण का केन्द्र रहा।
मालवीय उद्यान में कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि पूर्व मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी, महापौर श्रीमती हेमलता नेगी, विशिष्ट अतिथि नगर आयुक्त पीएल शाह, उपजिलाधिकारी कोटद्वार योगेश मेहरा ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्जवलित कर किया। गढ़ वंदना से सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरूआत की गई। इसके बाद थड़िया लोकगीत धारमा उरख्याली, चौफुला लोकगीत को होला चौराडे सुकीलो, लोकगीत वो मेरे प्याला की गीत पर प्रस्तुत कलाकारों ने दी। सामूहिक गीत ना बास घुगती चैत की, कब आलू मंगशीर मैना, पारम्परिक एकल गायन की प्रस्तुति, उत्तराखण्ड का पारम्पिक झोडा जिसके बोल है हिमुली हयो पड़ा हिमाला की प्रस्तुति कलाकारों ने दी। कार्यक्रम में लोक गायिका मनीषा बिष्ट, पूजा रावत, दीप्ति डोबरियाल ने पारम्परिक एकल गीत की प्रस्तुति दी। राजेन्द्र रौथाण ने हारमोनियम, सुधांशु बिष्ट ने तबला, सोनू मस्ताना ने ढोलक, प्रमोद केशव ने हुड़क, जनेश कुमार ने मसकबीन पर साथ दिया। मोनिका आर्य, दीपिका, यश, शिल्पा रावत, अंकित भट्ट, रोहित कुमार, सूरज शर्मा, मोहित, अजेश डबराल, जनेश कुमार ने लोकगीतों पर नृत्य की प्रस्तुति दी। पूर्व मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी ने कहा कि युवा ही भावी राष्ट्र के निर्माता हैं। उन्होंने युवाओं से लोक संस्कृति और कला के संरक्षण एवं संवद्र्धन को आगे आने की अपील करते हुए कहा कि नाट्य एकेडमी उभरते हुए नवोदित कलाकारों को मंच उपलब्ध करवाकर लोक संस्कृति को बढ़ावा देने का काम कर रही है। कार्यक्रम निर्देशक राकेन्द्र रौथाण ने कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए सभी का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने का उद्देश्य ही अपनी लोक संस्कृति और कला को संजोये रखना है। इस मौके पर देव भूमि के अध्यक्ष खुशहाल सिंह बिष्ट, आंनद सिंह नेगी, हुकुम सिंह नेगी, संस्था की संस्थापक नीलम नेगी सहित कई लोग मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन कार्यक्रम के निर्देशक राकेन्द्र रौथाण ने किया।