जलने लगी पराली, दमघोंटू प्रदूषण के लिए हो जाइये तैयार
नई दिल्ली, इस माह दिवाली और दशहरा है। वहीं धान की कटाई भी शुरू हो चुकी है। इस मौसम के शुरू होते ही दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की परत एक बार फिर से गहराने लगी है। दिल्ली सरकार ने फिलवक्त इस बात को लेकर सहमति जताई है कि ऑड-ईवन लागू किया जाएगा। लेकिन कई रिपोर्ट इस बात की तसदीक करती है कि सिर्फ गाड़ियों का प्रदूषण दिल्ली की सेहत नहीं बिगाड़ता, पराली भी दिल्ली की आबोहवा खराब करने के बड़े कारणों में एक है। हरियाणा और पंजाब में खेतों से उठने वाला पराली का धुआं हर साल की तरह इस बार भी हवा को जहरीला बनाएगा। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सहित उत्तर भारत में अक्टूबर के पहले दिन ही लगभग 285 से ज़्यादा पराली जलाने की घटनाएं दर्ज की गई हैं। यह चिंता का विषय है क्योंकि पंजाब और हरियाणा ने 2024 तक शून्य पराली जलाने का वादा किया था। यूं तो पंजाब और हरियाणा के खेतों में धान की कटाई के बाद ही कृषि अवशेष जलाने लगते हैं, लेकिन 15 सितंबर के बाद इसमें तेजी आने लगती है। पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाएं 15 अक्टूबर से 25 नवंबर तक होती हैं। इसी दौरान दीपावली का पर्व भी आता है और हवा की गति बहुत धीमी होती है। पराली और दिवाली का धुआं मिलकर प्रदूषण की स्थिति को खतरनाक बना देते हैं।
लगभग डेढ़ महीने तक दिल्ली-एनसीआर के लोग इस पराली के धुएं के चलते प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर होते हैं। एक सिगरेट जितना छोटा प्रदूषक भी हवा में जहर घोल सकता है, तो सोचिए, एक टन पराली जलने से निकलने वाला धुआं कितनी तबाही मचाता होगा! वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की रिपोर्ट बताती है कि एक टन पराली जलने से सैकड़ों किलो जहरीली गैसें और कण हवा में घुलते हैं, जो दिल्ली की सांसों को धीमा जहर दे रहे हैं।
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और निकटवर्ती क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक एक मीट्रिक टन पराली जलाने से लगभग 3 किलो पार्टीकुलेट मैटर, दो किलो सल्फर डाई ऑक्साइड, 60 किलो कार्बन मोनो ऑक्साइड और 1460 किलो कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है। सुप्रीम कोर्ट ने भी बीते दिनों कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट से सख्त लहजे में पूछा कि हर साल यही होता है। हर साल पराली जलाई जाती है, क्या इसमें कोई कमी आई है?
रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा और पंजाब में हर साल कृषि अवशेष के तौर पर लगभग 27 मिलियन टन पराली निकलती है। सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट में लम्बे समय से वायु प्रदूषण पर काम कर रहे विवेक चटोपाध्याय कहते हैं कि अक्टूबर का महीने शुरू होते ही पराली जलाए जाने की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। सेटेलाइट से प्राप्त चित्रों में तेजी से बढ़ते पराली जलाने को मामलों को साफ तौर पर देखा जा सकता है। जल्द ही उत्तर पश्चिमी हवाओं का चलना शुरू होगा। ऐसे में दिल्ली की हवा में पराली की धुआं भर जाएगा।