अनुपम है दूधातोली का प्राकृतिक सौन्दर्य
जयन्त प्रतिनिधि।
कोटद्वार। उत्तराखण्ड वैसे तो प्राकृतिक सौन्दर्य से अच्छादित है। प्रकृति ने जैसे उत्तराखण्ड को सवारने में अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया हो। उस पर पहाड़ों को तो जैसे कुदरत ने विशेष नैमते बख्शी हैं उसी में से एक जगह है दूधातोली। दूधातोली को अगर गढ़वाल का कश्मीर कहा जाय तो यह अतिशंयोक्ति नहीं होगी यहां पर गढ़वाल की सबसे बड़ी ऊंची चोटी झण्डाधार दूधातोली में ही विद्यमान है। जहां से गोपेश्वर, चन्द्रबदनी, नैनीतल, रानीखेत, जौरासी आदि स्थान दृष्टिगोचर होते है। वर्तमान में प्रस्तावित उत्तराखंड की राजधानी गैरसंैण का भराडीसैंण भी दूधातोली परिक्षेत्र में ही आता हैं। यह क्षेत्र हरे भरे जंगलो से अच्छादित है यदि यह कहा जाय कि यह पर्वत गढ़वाल के सम्पूर्ण पानी की आपूर्ति सुन्शिचित करता है तो यह अतिशंयोक्ति नहीं होगी। यहां से निकल ने वाली नदियों में 6 नदियां है। जिनमें प्रमुख नदियां पूर्वी नयार, पश्चिमी नयार, विनो नदी, रामगंगा आदि है। साथ ही पश्चिमी ताल होने के कारण यहां ऊषाकल से सांय काल तक धूप लगातार बनी रहती है।
समुद्रतल से 10200 फीट की ऊंचाई पर गढ़वाल दर्शनी मुशाकोट नामक चोटी है। वही 10183 फीट की ऊंचाई पर पेशावर कांड के अमर सेनानी वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली की समाधि स्थल कोदियाबगड़ नामक चोटी है। दूधातोली के पूर्वी भाग में पांडव कालीन सिद्घपीठ भगवान बिनसर महादेव का प्रसिद्घ मंदिर है जो केदारनाथ के मंदिर शैली के जैसा है। दूधातोली के पूर्वी भाग मे बधाणगढी, चोपडागढी, जूनागढी, एवं जुगतूगढी आदि गढ़वाल के इतिहास के स्वर्ण काल को दर्शाते आज भी उसी निडरता से खडे़ आपको दिखाई देते दिख सकते है। इनके संरक्षण एवं सर्वेक्षण हेतु बीर चन्द्रसिंह गढ़वाली ने पण्डित जवाहर नेहरु से मांंग की थी। साथ ही दूधातोली को सामरिक दृष्टि से देखते हुये यहां पर सैनिक छावनी खोली जानी चाहिये तथा कोदियाबगड को थैलीसैंण व गैरीसंैण मोटर मार्ग से जोड़ा जाना चाहिये। पेशावर काण्ड के नायक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली ने आजादी की लड़ाई के साथ-साथ क्षेत्र के विकास के लिये सदैव संर्घष करते रहे परंतु सरकार सदैव उनको नजर अंदाज करती रही यदि तब सरकारो ने उनकी बतो को गंभीरता से लिया होता तो आज पलायन इस कदर न हुआ होता। उनकी सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक दूधतोली में तहसील के साथ-साथ सैनिक छावनी, सैनिक स्कूल, जड़ी बूटी शोध संस्थान, थैलीसंैण का मरोडा तक रेलवे लाईन, ब्यासघाट से मरोडा पूर्वी नयार नदी के किनारे-किनारे भांग की खेती कर इसको उद्योग की शक्ल देकर लोगो की आर्थिकी को मजबूत करना। साथ ही पर्यटन को बढ़ावा देन के लिये पूर्वी एवं पश्चिमी नदी नयार घाटी के किनारे-किनारे पर्यटन केन्द्रों की स्थापना कर यहां पर पर्यटन को उद्योग के रूप में विकसित करना मुख्य रूप से था। वर्तमान में स्थानीय लोगों द्वारा राज्य सरकार एवं केन्द्र सरकार से लगातार डिफैन्स रोड की मांग की जा रही है जिससे इस क्षत्र का चहुंमुखी विकास हो सके।