संपादकीय

जिम्मेदारियां भी होंगी अब तय

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कोरोना से लड़ने की मुहिम में पूरे देश ने साथ दिया है। कुछ लोगों के कारण जरूर कोरोना से लड़ने की मुहिम को झटका लगा है लेकिन एक बात तो तय हो गयी कि महामारी या आपदा में हमें अपनी योजनाएं बनाते समय ऐसे दुष्टों के बारे में भी वर्क प्लान तैयार करना होगा। मुश्किल में ही अपनों एवं गैरों की परीक्षा होती है। कोरोना ने भी कुछ गद्दारों को बेनकाब किया है जो सरकार के प्रयासों की धज्जियां उड़ाने में सक्रिय बने रहे। इन चंद मुट्ठीभर लोगों से भारत के दूसरे लोगों को बचाने के लिए प्रयास किए गए तो यह लोग अपनी असली हरकतों पर उतर आए। चलिए अच्छा ही हुआ। कम से कम देश ने यह तो देखा कि ऐसे धार्मिक कट्टरवाद से देश को क्या हासिल होने वाला है? नापाक मंसूबे कुछ समय के लिए तो असर डाल सकते हैं लेकिन इनका असर अधिक दिनों तक रहने वाला नहीं है। असर रहेगा तो इनकी नीयत एवं देश व समाज के प्रति जिम्मेदारियों का। देश ने जान लिया है कि अधिक उम्मीद एवं विश्वास करके सुरक्षित समाज की कल्पना नहीं की जा सकती है। कहीं न कहीं जिम्मेदारियों का वर्गीकरण तो करना ही होगा। यदि बात केवल गलती तक ही होती तो देश इसे एक भूल मान कर माफ कर देता, लेकिन ऐसा तो अब बार-बार होने लगा है। देश व समाज की मानो कोई चिंता ही नहीं रह गयी है। गलती के बाद भी सरकारी तंत्र मदद कर रहा है तो यहां भी अश्लीलता एवं बदतमीजी की हदें पार की जा रही हैं। जानबूझ कर मासूम लोगों को बिमारी फैलाना किसी संगीन अपराध से कम नहीं आंका जा सकता। राहत देने वालों पर पत्थर बरसाना, थूकना यह कौन सी सभ्यता या धर्म का अंश है, इसे संबंधित धर्म गुरू क्या कभी देश को समझा पाऐंगे। नियंत्रण में आते हुए हालातों को कुछ सिरफिरों ने काबू से बाहर कर दिया। देश का मुखिया विनती करते थक गया लेकिन देश की व्यवस्था को खुद से उपर मानने वालों ने इस पर पर भी कटाक्ष एवं उपहास करने का मौका नहीं छोड़ा। यह देश का संयम नहीं है तो और क्या है। अभी मामलों की संख्या लगातार बढ रही है और उम्मीद है कि आने वाले कुछ दिनों में इस संख्या में और भी बढ़ोतरी हो। राहत की बात तो यह है कि अधिकांश लोगों को चिन्हित कर लिया गया है लेकिन चिंता यहां उन लोगों को लेकर है जो अभी चिन्हित होने बाकी हैं। उत्तराखंड के संदर्भ में बात करें तो यहां सब कुछ ठीक ही चल रहा था, मरीजोंं एवं संदिग्धों का आंकड़ा स्थिर था। एकाएक बात बिगड़ गयी। जमात में शामिल होने वालों के संपर्क असर दिखाने लगे और उत्तराखंड छ: से सीधे 23 पर जा पहुंचा। कहां बातें हो रहीं थी कि 14 अप्रैल तक सब कुछ सामान्य कर लिया जाएगा और कहां अब लॉकडाउन की सीमा को लेकर कयासबाजियां लगाई जाने लगी हैं। सरकार एवं कोरोना योद्घा जल्द ही हालात सुधार लेंगे लेकिन यह वक्त कई सीख भी सरकार एवं प्रशासन को देकर जाएगा। जनता भी अपने एवं गैरों के भेद को पहचानने का प्रयास करेगी और उन लोगों को भी सदैव याद रखा जाएगा जो इस मुश्किल घड़ी में भी अपना घरबार छोड़ कर जनसेवा में लगे रहे।

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