महान रावण का पुतला दहन मंजूर नहीं
दशहरे पर रावण की तैयारियां जोरों पर हैं। वहीं महाराष्ट्र में दशहरा रैली पर शिवसेना के दोनों गुट अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में जुटे हैं। इस बीच एक संगठन ने रावण दहन का विरोध किया है।
मुंबई, एजेंसी। दशहरे पर रावण की तैयारियां जोरों पर हैं। वहीं महाराष्ट्र में दशहरा रैली पर शिवसेना के दोनों गुट अपनी ताकत दिखाने की तैयारी में जुटे हैं। इस बीच एक संगठन ने रावण दहन का विरोध किया है। इस संगठन ने पुलिस से मांग कर डाली है कि रावण दहन करने वाले के खिलाफ अत्याचार का मामला दर्ज किया जाए। यह मांग की है महाराष्ट्र के आदिवासी बचाव अभियान और संगठनों ने। इन्होंने इस मामले में पुलिस को ज्ञापन भी सौंपा है। पुलिस अधिकारियों ने नियमानुसार कार्रवाई का आश्वासन दिया है।
संगठन ने अपनी इस मांग के पीटे तर्क भी दिए हैं। उसने अपने ज्ञापन में बताया कि तमिलनाडु में रावण के 352 मंदिर हैं। सबसे बड़ी मूर्ति मध्य प्रदेश में है। अमरावती जिले में छत्तीसगढ़ के मेलघाट में जुलूस निकालकर रावण की पूजा की जाती है। संगठन के मुताबिक रावण आदिम संस्ति का पूजा स्थल और देवता है। वहीं देश में आदिवासियों द्वारा पूज्यनीय राजा को जलाने की कुप्रथा और परंपरा जारी है। इससे देश में आदिवासी समुदाय की भावनाएं आहत होती हैं। इसलिए किसी को रावण दहन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और लेकिन इस प्रथा को स्थायी रूप से बंद कर देना चाहिए।
गौरतलब है कि रावण दहन की प्रथा हजारों साल से चली आ रही है। असत्य पर सत्य की विजय के तौर पर हर साल दशहरे पर रावण की प्रतिमा का दहन किया जाता है। लेकिन इस साल महाराष्ट्र के आदिवासी बचाव अभियान और संगठनों ने इस प्रथा का विरोध किया है। इन संगठनों का कहना है कि रावण विभिन्न गुणों की खान था। वह एक संगीत विशेषज्ञ, एक राजनेता, एक उत्ष्ट मूर्तिकार, एक आयुर्वेदाचार्य, एक तर्कवादी था। ऐसे में रावण का पुतला जलाना, उसका और उसके गुणों का अपमान करने जैसा है।
संगठन के बयान में कहा गया है कि रावण एक न्यायी, न्यायपूर्ण राजा था जिसने सभी को न्याय दिया। इतिहास से टेड़छाड़ कर रावण को खलनायक घोषित कर दिया गया था। साथ ही हर साल दशहरे पर रावण की प्रतिमा का दहन किया जाता है। बयान में कहा गया है कि ऐसे राजा को इतिहास में बदनाम किया गया था। वास्तव में, राजा रावण की तरह एक शक्तिशाली योद्घा अब नहीं होगा।