विरासत

विरासत: उत्तराखण्ड क्रांति दल के संस्थापक डॉ. डी.डी. पंत राजनीतिक ही नहीं देश के ख्याति लब्ध वैज्ञानिक भी थे

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101वें जन्मदिन पर स्मरण
आज उत्तराखण्ड के ख्यातिलब्ध वैज्ञानिक, समाजसेवी, गांधीवादी और राजनेता श्री देवी दत्त पन्त जी का 101वां जन्मदिन है। पिथौरागढ जिले के गणाईगंगोली से आगे बनकोट के पास एक गांव हैं देवराड़ी पन्त, उसी गांव में 14 अगस्त, 1919 को श्री अम्बा दत्त पन्त जी के घर में इनका जन्म हुआ। इनके पिता एक वैद्य थे, कुशाग्र बुद्धि के पन्त जी को हाईस्कूल के लिये कांडा भेजा गया और जब वह इण्टर पास हुये तो आगे की पढाई के लिये आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसी बीच बैतड़ी, नेपाल के एक सम्पन्न परिवार से इनके लिये रिश्ता आया, इस शर्त पर विवाह तय हुआ कि ससुराल वाले इन्हें आगे पढाने के लिये आर्थिक मदद करेंगे। उच्च शिक्षा के लिये पन्त जी बीएचय़ू चले गये, प्रो० आसुंदी के अन्डर ही वह अपनी पी०एच०डी० करना चाहते थे, लेकिन तत्कालीन कुलपति डॉ० राधाकृष्णन ने उन्हें फैलोशिप देने से इन्कार कर दिया, उसके बाद वह डा० सी०वी० रमन के पास बंगलौर चले गये और उनेके निर्देशन में शोध कार्य शुरु किया और पन्त-रे की खोज भी की। शोध कार्य के बाद भारतीय मौसम विभाग में वैग्यानिक पर चयन भी हुआ, लेकिन वह शिक्षक ही बनना चाहते थे और वह आगरा वि०वि० में अध्यापक हो गये। डीएसबी कॉलेज नैनीताल की स्थापना पर वह भौतिकी के विभागाध्यक्ष के रुप में यहां आये और उन्होंने यहां फोटोफिजिक्स लैब की बुनियाद डाली। दूसरे विश्वयुद्ध के टूटे-फूटे उपकरण के जुगाड़ से लैब का पहला टाइम डोमेन स्पेक्ट्रोमीटर बनाया।
बाद में डॉ० पन्त उ०प्र० के शिक्षा निदेशक भी रहे और कुमाऊं वि०वि० की स्थापना होने पर उसके पहले कुलपति बने, उन्होंने कुमाऊं वि०वि० को स्थापित ही नहीं किया, बल्कि उसकी एक विशेष साख भी स्थापित की। पन्त जी बहुत आदर्शवादी थे, तत्कालीन राज्यपाल एम० चेन्नारेड्डी ने अपने एक ज्योतिषी को जब मानद डाक्टरेट देने को डॉ० पन्त से कहा तो डॉ० पन्त ने साफ मना कर दिया और बात बढने पर इस्तीफा देकर चले आये, जनविरोध के बाद राज्यपाल को झुकना पड़ा और डॉ० पन्त का इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया। इसी दौरान उत्तराखण्ड राज्य की मांग को लेकर सुगबुगाहट शुरु हो रही थी, डॉ० पन्त भी इसके पक्षधर थे, 1979 में जब उत्तराखण्ड क्रान्ति दल का गठन हुआ तो वह इसके संस्थापक अध्यक्ष बने और अल्मोडा-पिथौरागढ़ से लोकसभा का चुनाव भी लड़ा, लेकिन लोगों को नेता ही पसन्द आये और पन्त जी चुनाव हार गये। रिटायरमेंट के बाद डॉ० साहब हल्द्वानी में रहने लगे और 11 जून, 2008 को उनका निधन हो गया।

डा० पन्त एक बहुआयामी तथा सरल व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति थे, आज उनकी जयन्ती पर मैं उनका सादर स्मरण करता हूं और सरकार से मांग करता हूं कि उनके नाम पर एक विश्वविद्यालय पिथौरागढ में खोला जाय, जिसमें उनके सारे शोध पत्र आदि का एक संग्रहालय भी बनाया जाय।

पंकज सिंह महर 

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