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शिक्षक बनने की बाधा हुई दूर, हाईकोर्ट ने हटाई रोक

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नैनीताल। हाईकोर्ट ने राज्य में प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया पर लगी अंतरिम रोक हटा दी है। कोट ने साफ किया है कि नियुक्तियां याचिका के अंतिम आदेश के अधीन रहेंगी। दरअसल नेशनल काउंसिल अफ टीचर्स एजुकेशन की ओर से 2018 में नोटिफिकेशन जारी किया था। जिसमें शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए बीएड के लिए स्नातक में 50 फीसद अंकों की अनिवार्यता लागू कर दी।
सरकार ने भी इस शर्त को रूल्स में जोड़ दिया। यह भी तय किया कि नियुक्ति में पहली प्राथमिकता डीएलएड अभ्यर्थी को दी जाएगी, नहीं मिलने पर बीएड अभ्यर्थियों को मौका दिया जाएगा। टीईटी के अंकों के आधार पर मेरिट सूची बनेगी। इधर इस प्रावधान को अभ्यर्थी राजीव राणा समेत 30 से अधिक ने याचिका दायर कर चुनौती दी तो कोर्ट ने नियुक्तियों पर अंतरिम रोक लगा दी। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति रमेश खुल्बे की खंडपीठ में सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि अंतरिम रोक की वजह से नियुक्ति प्रक्रिया बाधित हुई हैं। जिसके बाद कोर्ट ने अंतरिम रोक हटा दी।

स्टोन क्रशरों पर सरकार से मांगा जवाब्
नैनीताल। हाईकोर्ट ने प्रदेश में अवैध रूप से संचालित स्टोन क्रशरों के मामले दायर जनहित याचिका पर गुरुवार को सुनवाई की। मामले में कोर्ट ने सरकार को जवाब पेश करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ में बाजपुर निवासी त्रिलोक चंद्र की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई।
याचिकाकर्ता की ओर से मांग की गयी थी कि प्रदेश में स्थापित अधिकांश स्टोन क्रशर मानकों के खिलाफ लगाए गए हैं। इनसे भारी प्रदूषण हो रहा है। ऐसे स्टोन क्रेशरों को बंद किया जाए, इससे अवैध खनन पर भी रोक लगेगी। याचिकाकर्ता ने प्रदेश में एक स्टोन क्रशर जोन बनाने व सभी स्टोन क्रशर उसी जोन में स्थापित किए करने की मांग की है।
इससे पहले 23 सितम्बर को अदालत ने अवैध स्टोन क्रशरों के मामले में सरकार व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) को निर्देश दिया था कि वह बताये कि प्रदेश के कितने स्टोन क्रेशर स्थापित हैं और वे किस नीति के तहत संचालित हो रहे हैं। अदालत ने यह भी पूछा था कि कितने स्टोन क्रेशर मानकों का पालन करते हैं और कितने अवैध रूप से संचालित हो रहे हैं।

सवास्थ्य सुविधाओं पर मांगा ब्यौरा
नैनीताल। उत्तराखंड की बदहाल चिकित्सा व्यवस्था में सुधार को लेकर हाईकोर्ट ने अहम आदेश पारित किया है। कोर्ट ने सूबे के सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं जिला अस्पतालों पर चार सप्ताह में सरकार से 34 बिन्दुओं पर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवि कुमार मलिमथ व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ में अधिवक्ता शान्ति प्रसाद भट्ट की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट ने 25 सितंबर 2020 के अपने आदेश में याचिकाकर्ता से कहा था कि वह उन प्रश्नों की सूची तैयार करे जिससे प्रदेश के प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं जिला अस्पतालों की वर्तमान स्थिति का आकलन किया जा सके। याचिकाकर्ता की ओर से एक विस्तृत शपथ पत्र पेश किया गया।
जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर 31 प्रश्न, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर 32 प्रश्न एवं जिला अस्पतालों पर 34 प्रश्नों की सूची तैयार की गयी थी। जो प्रश्न तैयार किए गए थे वह ऐसे है- क्या इस केन्द्रों पर बिजली, पानी, डक्टर, नर्सों एवं दवाइयों की व्यवस्था है ? आपातकालीन सेवा उपलब्ध है? एक्स रे मशीन एवं ऐसी बुनियादी चिकित्सा सुविधाएं उप्लब्ध हैं? क्या जंगली जानवर से हमला होने पर या उनके काटने पर इन्जेक्शन मौजूद है? आदि प्रश्नों को शामिल किया गया है।
खंडपीठ ने राज्य सरकार को 13 जिलों के प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं जिला अस्पताल से इन पर विस्तृत जवाब दाखिल करने को कहा है । इसके लिए राज्य सरकार को चार सप्ताह का समय दिया गया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 10 नवंबर को होगी। न्यायालय ने यह भी कहा है कि दिव्यांग जनों को स्वास्थ केंद्र या अस्पताल आने के लिए क्या सुविधा हैं। याचिका कर्ता की ओर से कहा गया कि कई जगह इन अस्पतालों में केवल सीढियों क माध्यम से पहुंचा जा सकता है।

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