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रूस की कूटनीति में भारत बना रहेगा अहम देश, राष्ट्रपति पुतिन ने जारी किया रूस की नई विदेश नीति का प्लान

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नई दिल्ली, एजेंसी। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन की सरकार ने एक बार फिर यह बात दोहराया है कि उनके लिए भारत के साथ रिश्तों की अहमियत आने वाले दिनों में और बढ़ेगी व उनकी कोशिश होगी कि कारोबार, निवेश, तकनीक से जुड़े द्विपक्षीय सहयोग को और प्रगाढ़ किया जाए। राष्ट्रपति पुतिन ने अपनी सरकार की नई विदेश नीति के मसौदे को गुरुवार को मंजूरी दी जिसमें रूस की भावी कूटनीति का चिंतन दर्शाया गया है।
रूस ने स्पष्ट तौर पर संकेत दिया है कि उसके लिए चीन और भारत दो सबसे अहम साझेदार होंगे। भारत की तरफ से इस पर आधिकारिक तौर पर कोई प्रतिक्रिया तो नहीं आई है लेकिन जिस तरह से रूस ने इसमें चीन के साथ भी अपने सुरक्षा संबंधी रिश्तों को भी मजबूत करने की बात कही है वह भारत के लिए कुछ चिंता का कारण भी हो सकता है।
मसौदे में कहा गया है कि रूस भारत के साथ अपने विशेष रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने की कोशिश जारी रखेगा। द्विपक्षीय कारोबार को बढ़ाने, निवेश को बढ़ाने व तकनीक क्षेत्र में सहयोग को बढ़ाने पर खास तौर पर ध्यान दिया जाएगा।
रूस भारत के साथ मिल कर यह भी कोशिश करेगा कि गैर मित्रवत देशों और उनके गठबंधनों की विध्वंसक कार्रवाइयों को विरोध भी जारी रहे। इस मसौदे में राष्ट्रपति पुतिन ने भारत की सदस्यता वाले तीन संगठनों ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन व दक्षिण अफ्रीका), शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) और आरआइसी (रूस-भारत-चीन) को और मजबूत बनाने की बात कही है।
रूस ने कहा है कि वह इन संगठनों को इसलिए मजबूत करना चाहता है ताकि दुनिया में एक नहीं बल्कि कई सारी शक्तियां हो। मसौदे में एससीओ का कई बार जिक्र है जिससे पता चलता है कि रूस इस संगठन को काफी महत्व दे रहा है।
सनद रहे कि इस वर्ष एससीओ का शिखर सम्मेलन जुलाई, 2023 में भारत ही होना है। इसमें शामिल होने के लिए भारत ने चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के साथ ही रूस के राष्ट्रपति पुतिन को भी आमंत्रण भेज चुका है। इन दोनों के भारत आने की भी संभावना है।
भारत के अलावा रूस ने चीन के साथ अपने संबंधों को और ज्यादा मजबूत करने की पूरी वकालत की है और यह कहा है कि उसे उम्मीद है कि वैश्विक स्तर पर सुरक्षा व स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए वह चीन के सात रणनीति सहयोग को बढ़ाएगा। चीन के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाने की भी बात है।
चीन की “वन बेल्ट-वन रोड” परियोजना का भी जिक्र है कि किस तरह से यूरेशिया क्षेत्र में इससे साझेदारी को बढ़ाया जा सकता है।
सनद रहे कि यूक्रेन विवाद के बाद रूस व भारत के बीच कारोबार काफी बढ़ गया है और भारत ने वैश्विक मंच पर अभी तक रूस के रवैये की निंदा भी नहीं की है लेकिन दूसरी तरफ जिस तरह से चीन के साथ रूस की रणनीतिक साझेदारी बढ़ रही है उसको लेकर भारत बहुत सहज भी नहीं है।
यह एक वजह है कि भारत अमेरिका व दूसरे पश्चिमी देशों के साथ भी अपने रिश्तों को लेकर भी उतना ही सजग है।

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